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________________ ( ७८ ) राज्य के जिन सात अङ्गों की बात मनु, कामन्दकर और कौटिल्य आदि ने की है वे सभी पाण्डव पुराण में पाये जाते हैं इनमें स्वामी अथवा राजा सर्वप्रमुख है । अमात्य भारतीय मनीषियों ने मन्त्रियों को बहुत महत्त्व दिया है । मन्त्रियों के सत्परामर्श पर ही राज्य का विकास, उन्नति एवं स्थायित्व निर्भर है। कौटिल्य ने अमात्य का महत्त्व बताते हुये लिखा है कि जिस प्रकार रथ एक पहिये से नहीं चल सकता उसी प्रकार राज्य को सुचारु रूप में चलाने के लिये राजा को भी सचिव रूपी दूसरे पहिए की आवश्यकता होती है। शुक्रनीति में कहा गया है कि चाहे समस्त विद्याओं में कितना ही दक्ष क्यों न हो ? फिर भी उसे मन्त्रियों के सलाह के बिना किसी भी विषय पर विचार नहीं करना चाहिये। इसी प्रकार मनुस्मृति , याज्ञवल्क्य स्मृति , रामायण, महाभारत' आदि ग्रन्थों में अमात्य पद का महत्त्व वर्णित है। पाण्डव पुराण में अमात्य को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । अमात्य राजा को नीतिपूर्ण सलाह देते थे इसलिये इन्हें "युक्तिविशारद"१० कहा गया है । मन्त्री प्रायः राजा को प्रत्येक कार्य में सलाह देते थे। राजा अकम्पन ने पुत्री सुलोचना के लिये योग्य वर की खोज के लिये मन्त्रियों से सलाह की तथा सिद्धार्थ आदि सभी मन्त्रियों की सलाह से स्वयम्वर विधि का आयोजन किया । १. मनुस्मृति, ९।२९४ २. नीतिसार, ४.१२ | ३. अर्थशास्त्र, ६.१.१ ४. वही, १.७.१५ ५ शुक्रनीति, २.२ ६. मनुस्मृति, ७.४५ ७. याज्ञवल्क्य स्मृति, १.३१० ८. रामायण, अयोध्या काण्ड, १९७.१८ ९. महाभारत सभापर्व, ५.२८ १०. पाण्डव पुराण, ४।१३१ ११. वही, ३१३२-४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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