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( ७७ ) जाती है और यदि राजा समानवृत्ति का होता है तो प्रजा भी वैसी ही हो जाती है। इससे स्पष्ट है कि राजा के आचार-विचार तथा गुणदोषों का प्रजा पर सीधा प्रभाव पड़ता है । ___ जैन आगमों में सापेक्ष और निरपेक्ष दो प्रकार के राजाओं का उल्लेख हुआ है । सापेक्ष राजा अपने जीवन काल में ही पुत्र को राज्यभार सौंप देते थे जिससे गृह-युद्ध की सम्भावना न रहे । निरपेक्ष राजा अपने जीते जी राज्य का उत्तराधिकारी किसी को नहीं बनाते थे। पाण्डव पुराण में प्रथम प्रकार के सापेक्ष राजाओं की स्थिति दृष्टिगोचर होती है - आदिप्रभु द्वारा बाहुबली कुमार को पोदनपुर का राज्य तथा अन्य निन्यानबे पुत्रों को भिन्न-भिन्न देश का राज्य देना, राजा सोमप्रभः द्वारा अपने पुत्रों में समस्त राज्य विभक्त करना आदि।
पाण्डव पुराण में राजा के निर्वाचन का आधार प्रमुख रूप से पितृ या वंशानुक्रम ही है। राज्य व्यवस्था
राज्यशास्त्रों में राज्य को सप्ताङ्ग माना गया है। महाभारत के अनुसार सप्तात्मक राज्य की रक्षा यत्नपूर्वक की जानी चाहिये । कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दण्ड और मित्र ये सात राज्य के अङ्ग होते हैं। जिन्हें प्रकृति कहा जाता है, इनके अभाव में राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। इनमें सभी का स्थान महत्त्वपूर्ण है। महाभारत में सभी का महत्त्व समान बताया गया है। १. पाण्डव पुराण, १७१२६० २. वही, २।२२५ ३. वही, ३१४ ४. महाभारत शान्तिपर्व ६९।६४-६५ ५. कौटिल्य अर्थशास्त्र, ६.१.१ ६. महाभारत शान्तिपर्व, ६१।४०
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