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समाज की स्थापना की । पाण्डव पुराण के अनुसार इस अवस्था को त्यागने का कारण समयानुसार साधनों की कमी तथा प्रकृति में परिवर्तन होना था। इन्हीं सङ्कटों को दूर करने के लिये समय-समय पर विशेष व्यक्तियों का जन्म हुआ। इन व्यक्तियों को 'कुलकर' कहा गया है। इन्होंने हा, मा और धिक्कार ऐसे शब्दों का दण्ड रूप में प्रयोग करके लोगों की आपत्ति दूर की। राज्य की उत्पत्ति का मूल इन कुलकरों और इनके कार्यों को ही कहा जा सकता हैं ।
राजा
राज्य में राजा का महत्त्व सर्वोपरि है। राजा के अभाव में राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। मनु के अनुसार बिना राजा के इस लोक में भय से चारों ओर चल-विचल हो जाता है इस कारण सबकी रक्षा के लिये ईश्वर ने राजा को उत्पन्न किया । कामन्दक के अनुसार जगत् की उत्पत्ति एवं वृद्धि का एकमात्र कारण राजा ही होता है। राजा प्रजा के नेत्रों को उसी प्रकार आनन्द देता है जिस प्रकार चन्द्रमा समुद्र को आह्लादित करता है। महाभारत में राजा को समाज का रक्षक बतलाते हुए कहा गया है कि प्रजा के धर्माचरण का मूल एकमात्र राजा होता है। राजा के डर से ही मनुष्य-समाज में शान्ति बनी रहती है राजा के अभाव में कोई वस्तु निरापद नहीं रह पाती । कृषि, वाणिज्य आदि राजा की सुव्यवस्था पर ही निर्भर होते हैं । राजा समाज का सञ्चालक होता है उसके अभाव में मनुष्य का जीवन दुःसाध्य हो जाता है । पाण्डव पुराण में राजा के महत्त्व को बतलाते हुये कहा गया है कि जैसा राजा होता है वैसी ही प्रजा होती है। यदि राजा धर्माचरण करने वाला होता है तो प्रजा भी धर्म में स्थिर रहती है और यदि राजा पापी होता है तो प्रजा भी पापी हो १. राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त (पुखराज जैन) पृ० १००-१०१ २. पाण्डव पुराण, २।१३९-१४२ ३. वही, २११०७ ४. मनुस्मृति, ७॥३ ५. कामन्दक नीतिसार, १९ ६. महाभारत शान्तिपर्व ६८ अध्याय
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