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________________ पाण्डव पुराण में राजनैतिक स्थिति "पाण्डव पुराण" आचार्य शुभचन्द्र भट्टारक द्वारा वि० सं० १६०८. में रचित जैन पुराण है । इस ग्रन्थ में कौरव - पाण्डवों की कथा का वर्णन जैन मान्यता के अनुसार किया गया है । जैन साहित्य में यह पुराण " जैन- महाभारत" के नाम से प्रसिद्ध है । यद्यपि आचार्य शुभचन्द्र ने महाभारत की कथा को लेकर ही इस पुराण की रचना की है तथापि इसमें वैदिक महाभारत की कथा से पद-पद पर भेद दृष्टिगोचर होता है । महाभारत कथा विषयक ग्रन्थ होने के कारण इस में स्थान-स्थान पर राजनीति सम्बन्धी बातें स्पष्ट दिखलाई पड़ती हैं । पाण्डव पुराण के अध्ययन से हमें पाण्डव पुराण में राजतन्त्रात्मक शासनप्रणाली के दर्शन होते हैं, पाण्डव पुराण में राजनीति सम्बन्धी जिन बातों की जानकारी मिलती है वे इस प्रकार हैं राज्य - रीता बिश्नोई --- पाण्डव पुराण के अध्ययन से राज्य की उत्पत्ति के जिस सिद्धान्त को सर्वाधिक बल मिलता है वह है सामाजिक समझौते का सिद्धान्त । इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य दैवीय न होकर एक मानवीय संस्था है जिसका निर्माण प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा पारस्परिक समझौते के आधार पर किया गया है । इस सिद्धान्त के प्रतिपादक अत्यन्त प्राचीन काल से एक प्राकृतिक अवस्था के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, जिसके अन्तर्गत जीवन को व्यवस्थित रखने के लिये राजा या राज्य जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी । इस प्राकृतिक व्यवस्था के विषय में पर्याप्त मतभेद है, कुछ इसे पूर्व सामाजिक तो कुछ पूर्व राजनैतिक अवस्था मानते हैं । इस प्राकृतिक अवस्था के अन्तर्गत व्यक्ति अपनी इच्छानुसार प्राकृतिक नियमों को आधार मानकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं । प्राकृतिक अवस्था के स्वरूप के सम्बन्ध में मतभेद होते हुये भी यह सभी मानते हैं कि किसी न किसी कारण मनुष्य प्राकृतिक अवस्था को त्यागने को विवश हुये और समझौते द्वारा राजनैतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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