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________________ कर्मकाण्डात्मक स्वरूप का भी विरोध किया था। आचारांग का प्रथम श्रुतस्कन्ध महावीर की जीवनचर्या के प्रसंग में उनकी ध्यान एवं तप-साधना की पद्धति का उल्लेख करता है। इसके पश्चात् आचारांग के द्वितीय-श्रुतस्कन्ध, दशवकालिक, उत्तराध्ययन आदि ग्रंथों में हमें मुनि जीवन से सम्बन्धित भिक्षा, आहार, निवास एवं विहार-सम्बन्धी नियम मिलते हैं। इन्हीं नियमों के संदर्भ में उत्तराध्ययन में तपस्या के विविध रूपों की चर्चा भी हमें उपलब्ध होती है। तपस्या करने की विविध विधियों की चर्चा हमें अन्तकृतदशा में भी उपलब्ध होती है जो कि उत्तराध्ययनसूत्र के तप सम्बन्धी उल्लेखों की अपेक्षा परवर्ती एवं अनुष्ठानपरक हैं। यहाँ हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि अंतगडदसाओ (अंतकृतदशा) का वर्तमान स्वरूप ईसा की ५ वीं शताब्दी के पश्चात् का ही है । उसमें गुणरत्नसंवत्सरतप, रत्नावलीतप, लघुसिंहक्रीड़ातप, कनकावलीतप, मुक्तावलीतप, महासिंहनिष्क्रीडिततप, सर्वतोभद्रतप, भद्रोत्तरतप, महासर्वतोभद्रतप और आयम्बिलवर्धमानतप आदि के उल्लेख मिलते हैं। जहाँ तक श्रमण साधकों के नित्यप्रति के धार्मिक कृत्यों का सम्बन्ध है हमें ध्यान एवं स्वाध्याय के ही उल्लेख मिलते हैं। उत्तराध्ययन के अनुसार मुनि दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय में ध्यान, तृतीय में भिक्षाचर्या और चतुर्थ में पुनः स्वाध्याय करें। इसी प्रकार रात्रि के चार प्रहरों में प्रथम में स्वाध्याय, द्वितीय में ध्यान, तृतीय में निद्रा और चतुर्थ में पुनः स्वाध्याय करें। नित्य कर्म के सम्बन्ध में प्राचीनतम उल्लेख 'प्रतिक्रमण' के मिलते हैं । पार्श्वनाथ और महावीर की धर्मदेशना का एक मुख्य अन्तर प्रतिक्रमण की अनिवार्यता रही है । महावीर के 'धर्म को सप्रतिक्रमण धर्म कहा गया है। महावीर के धर्मसंघ में प्रतिक्रमण एक दैनिक अनुष्ठान बना। इसी से षडावश्यकों की अवधारणा का विकास हुआ। आज भी प्रतिक्रमण षडावश्यकों के साथ किया जाता है । श्वे० परम्परा के आवश्यक सूत्र एवं दिगम्बर और यापनीय परम्परा के मूलाचार में इन षडावश्यकों के उल्लेख हैं। ये षडावश्यक कर्म हैं-सामायिक, चतुर्विशतिस्तव, गुरुवंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग (ध्यान) और प्रत्याख्यान । यद्यपि प्रारम्भ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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