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________________ और बौद्ध परम्परागों में उसका खुला विरोध किया और इस विरोध में उन्होंने इन सबको एक नया अर्थ प्रदान किया। भारतीय अनुष्ठानों/कर्मकाण्डों में यज्ञ/होम तथा स्नान अति प्राचीनकाल से प्रचलित रहे हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में यज्ञ के आध्यात्मिक स्वरूप का विवेचन उपलब्ध होता है। उसमें कहा गया है कि "जो पाँच संवरों से पूर्णतया सुसंवृत हैं अर्थात् इन्द्रियजयी हैं जो जीवन के प्रति अनासक्त हैं, जिन्हें शरीर के प्रति ममत्वभाव नहीं है, जो पवित्र हैं और जो विदेह भाव में रहते हैं, वे आत्मजयी महर्षि ही श्रेष्ठ यज्ञ करते हैं । उनके लिए तप अग्नि है, जीवात्मा अग्निकुण्ड है। मन, वचन, और काय की प्रवृत्तियाँ ही कलछी (चम्मच) हैं और कर्मों (पापों) का नष्ट करना ही आहुति है। यही यज्ञ संयम से युक्त होने के कारण शान्तिदायक और सुखकारक है । ऋषियों ने ऐसे ही यज्ञों की प्रशंसा की है"। स्नान के आध्यात्मिक स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसमें कहा गया है-धर्म ही हृद (तालाब) है, ब्रह्मचर्य तीर्थ (घाट) है और अनाकुल दशारूप आत्म प्रसन्नता ही जल है जिसमें स्नान करने से साधक दोषरहित-विमल एवं विशुद्ध हो जाता है।' बुद्ध ने भी अंगुत्तरनिकाय के सुत्तनिपात में यज्ञ के आध्यात्मिक स्वरूप का विवेचन किया है । उसमें उन्होंने बताया है कि कौन सी अग्नियाँ त्याग करने के योग्य हैं और कौन सी अग्नियाँ सत्कार करने के योग्य हैं। वे कहते हैं कि "कामाग्नि, द्वेषाग्नि और मोहाग्नि त्याग करने योग्य हैं और आह्वानीयाग्नि, गार्हपत्याग्नि और दक्षिणाग्नि अर्थात् माता-पिता की सेवा, पत्नी और सन्तान की सेवा तथा श्रमण-ब्राह्मणों की सेवा करने योग्य है। महाभारत के शान्तिपर्व और गीता में भी यज्ञों के ऐसे ही आध्यात्मिक और सेवापरक अर्थ किये गये हैं। जैन परम्परा ने प्रारम्भ में धर्म के नाम पर किये जाने वाले कर्मकाण्डों का विरोध किया और अपने उपासकों तथा साधकों को ध्यान, तप आदि की आध्यात्मिक साधना के लिए प्रेरित किया। जैन धर्म के प्राचीनतम ग्रंथों में हमें धार्मिक कर्मकाण्डों एवं विधिविधानों के सम्बन्ध में केवल तप एवं ध्यान की विधियों के अतिरिक्त अन्य कोई उल्लेख नहीं मिलता है। पार्श्वनाथ ने तो तप के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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