SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५९ ) था, जीता है, और जीएगा, वह जीव द्रव्य है और चारों प्राण पुद्गल द्रव्य से निर्मित हैं। पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि' में आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि करते हुए कहा है कि जिस प्रकार यन्त्र प्रतिमा की चेष्टायें अपने प्रयोक्ता के अस्तित्व का ज्ञान कराती हैं उसी प्रकार प्राण आदि कार्य भी क्रियावान आत्मा के साधक हैं। कुन्दकुन्दाचार्य ने प्रकारान्तर से आत्मा को 'अहं' प्रतीति द्वारा ग्राह्य कहा है । 'जो चैतन्य आत्मा है, निश्चय से वह मैं (अहं) हूँ, इस प्रकार प्रज्ञा द्वारा ग्रहण करने योग्य है. और अवशेष समस्त भाव मुझसे परे है, ऐसा जानना चाहिए। इस प्रकार आत्मा स्वतःसिद्ध है। __ आत्मस्वरूप का विवेचन समयसार में आचार्य कुंदकुंद ने दो दृष्टियों से किया है : पारमार्थिक दृष्टिकोण एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण । दृष्टिकोण को जैनदर्शन में नय कहा गया है। आध्यात्मिक दृष्टि से नय दो प्रकार के होते हैं-(१)निश्चय और (२) व्यवहार नय । पारमार्थिक दृष्टि ही निश्चय नय है। कुंदकुंद ने निश्चय नय को भूतार्थ, परमार्थ, तत्त्व,' एवं शुद्ध कहा है। निश्चय नय वस्तु के शुद्ध स्वरूप का ग्राहक अर्थात् भेद में अभेद का ग्रहण करने वाला और व्यवहार नय को अभूतार्थ अथवा वस्तु के अशुद्ध स्वरूप का ग्राहक कहा गया है। आत्मा के शुद्ध स्वरूप का विवेचन शुद्ध निश्चय से ( अर्थात् जो शुद्ध वस्तु है उसमें कोई भेद न करता हुआ, एक ही तत्त्व का कथन शुद्ध निश्चय करता है ) एवं उसके अशुद्ध स्वरूप का विवे-- चन व्यवहार नय से ( अर्थात् अशुद्ध निश्चय नय की दृष्टि से कथन करता है)। शुद्ध स्वरूप का विवेचन कुंदकुंद ने भावात्मक और अभावात्मक दोनों दृष्टियों से किया है । भावात्मक पद्धति में उन्होंने १. सर्वार्थ सिद्धि ५।१९, पृ० १६६, सम्पा० जगरूप सहाय, भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था, कलकत्ता वि० सं० १९८५ २. समयसार-गाथा २९७ ३ वही, गाथा ११ ४. वही, गा० १५६ ५. वही, गा० २९ ६. वही, गा० ११ ७. वही, गा० ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy