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________________ 'समयसार' के अनुसार आत्मा का कर्तृत्व-अकर्तृत्व एवं भोक्तृत्व-अभोक्तृत्व -डा० श्रीप्रकाश पाण्डेय ईसा की प्रथम शताब्दी के पूर्वार्द्ध में दक्षिण भारत के कोण्डकुन्द नामक स्थल पर अवतीर्ण हुये आचार्य कुन्दकुन्द का दिगम्बर जैन पर म्परा के आचार्यों में अप्रतिम स्थान है। उनकी महत्ता इसी प्रमाण द्वारा सिद्ध हो जाती है कि दिगम्बर परम्परा के मङ्गलाचरण में उनका स्थान गौतम गणधर के तत्काल पश्चात् आता है। दक्षिण भारत के चार दिगम्बर संघों में से तीन का कुंदकुंदान्वय कहा जाना इसी तथ्य का प्रतिपादक है । कुंदकुंदाचार्य की गणना उन शीर्षस्थ जैन आचार्यों में की जाती है जिन्होंने आत्मा को केन्द्र-बिन्दु मानकर अपनी समस्त कृतियों का सृजन किया। उनकी कृतियों में से प्रमुख तीन पंचास्तिकाय, प्रवचनसार एवं समयसार का जैन आध्यात्मिक ग्रन्थों में वही स्थान है जो प्रस्थानत्रयी ( उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र, गीता) का वेदान्त दर्शन में है। प्रस्तुत निबन्ध में हमारा अभीष्ट इन तीनों रचनाओं में से 'समयसार' के अनुसार आत्मा के कर्तृत्व-भोक्तृत्व की विवेचना है। समयसार आत्मकेन्द्रित ग्रन्थ है। अमृतचन्द्र स्वामी ने 'समय' का अर्थ 'जीव' किया है--'टकोत्कीर्ण चित्स्वभावो जीवो नाम पदार्थः स समयः। समयत एकत्वे युग पज्जानाति गच्छति चेति निरुक्तेः'२ अर्थात् टङ्कोत्कीर्ण चित्स्वभाववाला जो जीव नाम का पदार्थ है, वह १. मङ्गलम् भगवान वीरो मङ्गलम् गौतमो गणी। मङ्गलम् कुन्दकुन्दार्यः जैन धर्मोऽस्तु मङ्गलम् ।। कुन्दकुन्दाचार्य की प्रमुख कृतियों में दार्शनिक दृष्टि : डा० सुषमा गांग प्रस्तावना पृ० ३१, भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली, वाराणसी-१९८२ २. समयसार-पं० पन्नालाल द्वारा सम्पादित-प्रस्तावना पृ० १७, गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला, वाराणसी-बी०नि०सं० २५०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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