SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर के जीवन के साधारण क्रम में भी देवी-देवताओं का प्रवेश कराकर उनके महत्त्व को स्थापित करने का प्रयत्न किया है। कई अतिशययुक्त कल्पनायें शामिल कर दी गई। यह प्रयत्न एक भक्त हृदय का है इतिहास लेखक का नहीं। संभवतः महान् आचार्य समन्तभद्र ने एक स्तोत्र में इन्हीं विचारों को लक्ष्य कर कहा था देवागम नभो यान, चामरादि विभूतयः । मायाविष्वपि इश्वते, नातस्तोमपि नोमहान ।। आपके लिये आकाश मार्ग से देव यान से आते हैं, आपको समक्ष समवसरण में चंवर डुलाई जाती है। यह ऐश्वर्य तो एक मायावी (इन्द्र जालिया) भी बना सकता है आप इसके कारण महान् नहीं अपितु आपका उदात्त कर्म, महान् है इसी कारण पूज्य हैं। निष्कर्ष यह है --जैसा कि स्वनामधन्य प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी ने व्यक्त किया हैं :(१) तीर्थङ्कर महावीर की माता देवानंदा ब्राह्मणी थी और जन्म कुल ब्राह्मण था। यह भी संभावना है कि बाल्यावस्था में ही उनको सिद्धार्थ राजा ने गोद लिया हो किन्तु यह उचित नहीं लगता क्योंकि ज्येष्ठ पुत्र नंदिवर्धन मौजूद थे। मुझे अधिक सम्भावना यह लगती है कि पालन-पोषण के लिये सिद्धार्थ राजा के यहाँ बाल्यावस्था में ही रख दिया गया। यह महत्त्वपूर्ण है कि तत्कालीन क्षात्र कुल की उच्चता सर्वस्वीकृत थी। क्षात्र कुल में अहिंसक वातावरण था जो जन्मना ब्राह्मण बालक तीर्थङ्कर महावीर की अन्तर्वत्ति के अनुकूल था। तीर्थङ्कर महावीर का सारा जीवन क्षात्र तेज सम्पन्न, अदम्य साहस और शौर्यमय बीता। मैंने इस लेख की तैयारी में स्वनामधन्य पं० सुखलालजी, विद्वान् देवेन्द्र मुनिजी, स्व० रामधारी सिंह दिनकर की महत्त्वपूर्ण कृतियों तथा विचारों से लाभ लिया है उनका ऋण स्वीकार करके उनके प्रति नतमस्तक है। (२), Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy