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( ५४ ) महावीर के समकालीन तथागत बुद्ध के जीव के गर्भ में आने के पूर्व देवगण उनके कुल तथा जन्म-स्थान के संबंध में विचार करके यह तय करते हैं कि इनका जन्म कपिलवस्तु के शाक्य कुल में उपयुक्त रहेगा। संभव है बौद्ध ग्रंथों में वर्णित इस घटना की कुछ छाया हमारे जैन कथाकारों के मस्तिष्क में भी हो । विद्वान् श्री देवेन्द्र मुनिजी ने यह मत व्यक्त किया है कि ब्राह्मण ज्ञान योगी हो सकता है; कर्मयोगी नहीं । इस कारण जन्म शाक्य कुल में होना जरूरी है।'
____ इस संबंध में महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उपस्थित होता है कि जैन दर्शन में “कर्म" की शक्ति बहुत शक्तिवान मानने की अवधारणा है । कर्म के आगे सब विवश हैं। यह स्मरणीय है कि महावीर के निर्वाण के पूर्व यह प्रश्न उनके सम्मुख उपस्थित हुआ कि यदि भगवान् का निर्वाण पूर्व या बाद का हो जाये तो भस्मग्रह को निष्प्रभावित किया जा सकता है। जिसका दुष्प्रभाव जैन शासन पर होने की संभावना है। किन्तु स्वयं महावीर ने उत्तर दिया कि यह किसी के वश में नहीं है । यह भी स्मरणीय है कि ८ कर्मों में गोत्र कर्म के फलस्वरूप उच्च-नीच गोत्र का बंध होता है। इसी प्रकार आयू कर्म में आयुष्य बंध होता है। कर्म को अप्रभावी करने के संबंध में महावीर ने विवशता बताई। क्या हरिणेगमेषी देव में यह शक्ति हो सकती है ? वास्तविकता यह ज्ञात होती है कि उस युग में ब्राह्मण पुरोहित यज्ञ पर पलने के कारण स्वार्थी हो गया था, तत्कालीन समाज में अलोकप्रिय भी हो गया था। क्योंकि राज्याश्रय के कारण सैनिकों द्वारा कृषि योग्य पशु तक को पकड़वाकर बलि दी जाती थी। इस कारण जनसाधारण की दृष्टि में वह हेय माना जाने लगा। यह भी एक कारण हो सकता है कि जिसने हमारे कथाकारों को क्षात्र कुल में जन्म लेने की बात पर जोर देने को विवश किया उसके लिये गर्भावतरण की घटना को कथा में जोड़ना पड़ा केवल यही नहीं अपितु यह घोषणा भी की गई कि तीर्थंकर सदैव क्षात्र कुल में जन्म लेते हैं। महावीर के जीव का ब्राह्मणी के गर्भ में आना तीर्थंकर के जिन-व्यवहार के विरुद्ध है। कथाकारों ने अपने आराध्य
१. महावीर : एक अनुशीलन, पृ० २१३ २. भारतीय संस्कृति के ४ अध्याय पृ० १३६, ३८४, २३४.
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