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तीर्थंकर महावीर जन्मना ब्राह्मण या क्षत्रिय
-सौभाग्यमल जैन संस्कृत के एक सुभाषित में कहा गया है कि
अयं निजः परोवेति, गणना लघुचेतसाम् ।
उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ जिन जीवात्माओं की चेतना लघु होती है उनके निकट स्व-पर का प्रश्न होता है और जो उदारचरित हैं उनके लिये पूरा विश्व एक कुटुम्ब जैसा होता है। महावीर उदारचरित थे, असाधारण महापुरुष थे । वे विश्वात्मरूप सारे जगत् को विश्वात्ममय अनुभव करते थे, सारे प्राणि-जगत् के प्रति अनुकंपा का भाव उनके हृदय में था। उर्दू के एक कवि ने इसी भाव को व्यक्त करते हुए कहा है
खंजर चले किसी पर, तड़पता है मेरा दिल ।
कि सारे जहाँ का दर्द, मेरे जिगर में है। इस कारण महावीर के संबंध में कुल, वर्ण आदि का प्रश्न महत्त्व नहीं रखता किन्तु इतिहास ठोस तथ्यों पर आधारित होता है, वहाँ भावना का महत्त्व नगण्य है। इतिहास की दृष्टि से देखने पर यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि महावीर जन्मना ब्राह्मण थे या क्षत्रिय । जैन धर्म के दोनों महत्त्वपूर्ण सम्प्रदायों में उनका जन्म क्षत्रिय कुल के ज्ञातृवंश में लिच्छवी गण के राजा सिद्धार्थ की पत्नी प्रियकारिणी त्रिशला के गर्भ से होने की दृढ़ मान्यता है किन्तु श्वेता० सम्प्रदायमान्य भगवती सूत्र के ९वें शतक में उल्लेख है कि जब ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानंदा ब्राह्मणी भगवान् के समवसरण (धर्म-सभा) में उपस्थित हुई तो उसके स्तन दूध से भर गये, अश्रुपात होने लगा, पुलकित हो गई तब प्रथम गणधर इन्द्रभूति के प्रश्न पर भगवान् ने समाधान किया कि देवानंदा ब्राह्मणी मेरी माता है। जहाँ तक लेखक को जानकारी है दिग० परम्परा के किसी ग्रंथ में इस घटना का उल्लेख नहीं है।
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