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( ४६ ) २१. अज्ञान परीषह - मन्द बुद्धि होने पर भी साधना में लगे
रहना। २२. दर्शन परीषह - अन्य मत व सम्प्रदायों के आडम्बर को
देखकर स्वधर्म में अश्रद्धा नहीं करना । इन बाईस परीषहों को सहन करना चाहिए ये मुक्ति की ओर ले जाने में सहायक तत्त्व हैं। समाचारी :
विशेष रूप से पालन करने योग्य नियम समाचारी कहे जाते हैं । इसको दिनचर्या कहा जाता है। ये दस प्रकार के बताये गये हैं :' आवश्यकीय, नषेधिकी, आप्रच्छना, प्रतिपृच्छना, छन्दना, इच्छाकार, मिथ्याकार, प्रतिश्रुत, तथ्यकार, गुरुपूजा अभ्युत्थान, उपसंपदा। अनाचार :
श्रमण जीवन को शास्त्रोक्त विधि से, नियमानुसार निम्नांकित ५२ अनाचारों से बचते रहने का विधान किया गया है। ये ही वे नियम हैं जिनके सम्यक् पालन से जनमानस में श्रद्धा व चारित्र की छाप छोड़ी जाती है और इन्हीं अनाचारों का सेवन करने से श्रमण सर्वत्र तिरस्कृत, कलंकित व असंयमी माना जाता है । १-जो वस्त्र, आहार, स्थान साधु के लिए बनाया या खरीदा गया
हो, उसका उपभोग करना। २–साधु के लिए खरीदी गई कोई भी वस्तु साधु ग्रहण करे । ३–आमंत्रण स्वीकार कर किसी के घर से आहार लेना। ४-धर्मस्थान में या साधु के सामने लाकर दी हुई वस्तु लेना, रखना। ५-रात्रि में अन्न, पानी, खाने की वस्तु या स्वादयुक्त खाने की
वस्तु रखना या खाना । ६-हाथ-पाँव धोना या पूर्ण स्नान करना। १. उत्तराध्ययनसूत्र २६।२-४ २. दशवकालिक-अध्याय ३
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