________________
( ४२ ) जैसे-रजोहरण, वस्त्र, पात्र आदि एवं जो संयम-रक्षा में थोड़े समय के लिए काम में आती हैं वे वस्तुएं "औपग्रहीत उपधि"
कही जाती हैं जैसे--पाट-पाटला, शय्या आदि । ५. मलमूत्रादिप्रतिस्थापना समिति-श्रमण को मल-मूत्र आदि परि.
ष्ठान योग्य को एकान्त स्थल, जहाँ जीव नहीं हों, ऐसी स्थंडिल भूमि में परठना चाहिए। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि दस विशेषणों वाले स्थंडिल में विष्ठा, मूत्र, श्लेष्म, कप, शरीरका मैल, न खाने योग्य आहार, जीर्ण वस्त्रादि उपधि, मृत शरीर आदि को परठना चाहिये ।' परठने का स्थान कैसा हो, इस बारे में उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है- (क) जहाँ कोई आता नहीं हो और देखता भी न हो; (ख) जहाँ कोई आता तो हो, परन्तु देखता नहीं हो; (ग) जहाँ आता तो कोई नहीं हो, किन्तु दूर खड़ा देखता हो और (घ) जहाँ कोई आता भी हो और देखता भी हो, इन चारों में से प्रथम बिन्दु अर्थात् जहाँ कोई आता नहीं हो और देखता भी नहीं हो वह स्थान शुद्ध है तथा वहीं पर परठना उपयुक्त है। स्थंडिल (जमीन) के दस विशेषण१- जहां सपक्ष व परपक्ष का आना-जाना नहीं हो और न ही दृष्टि
पड़ती हो। २- जहाँ छः काय के जीवों की विराधना न होती हो। ३- जहाँ भूमि समतल हो । ४- भूमि साफ व खुली हो। ५- भूमि कुछ समय पूर्व दाह आदि से अचित्त नहीं हो। ६- जो विस्तृत हो, यानी एक हाथ प्रमाण लम्बी-चौड़ी हो । ७- भूमि चार अंगुल नीचे तक अचित्त हो।
८- जहाँ बाग-बगीचा आदि अति निकट नहीं हो । २. 'उच्चार' पासवणं खेत सिंघाण-जल्लियं । आहारं उवहिं देहं अण्णं वावि तहाविहं ।।
-उत्तराध्ययनसूत्र २४११५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org