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________________ (४१) अपने को विलग रखकर आवश्यकता होने पर भाषण करना चाहिए।' ३. एषणा समिति -एषणा का अर्थ चाह से होता है। साधु जीवन का पालन करने व संयम-निर्वाह करने के लिए आहार की आवश्यकता होती है, रहने के लिए स्थान की आवश्यकता होती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति संयमित रूप से किस प्रकार हो, यह ध्यान रखना ही एषणा समिति है जैसे गाय चारा चरते समय ऊपर-ऊपर से घास खा जाती है, उसकी जड़ों को नहीं खाती, उसी प्रकार साधु को गृहस्थों के घरों से थोड़ा-थोड़ा आहार लेना चाहिए। जिससे गृहस्थ को नये आहार का निर्माण नहीं करना पड़े और उसी आहार से उनकी पूर्ति हो जाये। भिक्षाचर्या में साधु को राजा, गुप्तचर, गृहपति, सेठ के गुप्त मंत्रणा स्थलों पर नहीं जाना चाहिये। ४. आदानभाण्डमात्रनिक्षेपण समिति –साधु के उपयोग में आने वाली वस्तुओं को विवेकपूर्वक ग्रहण करना तथा प्रमाणित भूमि पर निक्षेपण करना आदानभाण्डमात्रनिक्षेप है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि ओघ और औपग्रहिक उपधि तथा भण्डोपकरण को मुनि द्वारा यतनापूर्वक देखकर ग्रहण करना चाहिए। यहाँ जो सदैव पास रखी जाती हैं वे वस्तुएं “ओघउपधि" १. भाषा समिति नमि हितमितसंदिग्धार्थभाषणम् __ आवश्यकहारिभद्रायावृत्ति ( जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप से उद्धृत ) २. रणो गिहवईणं च, रहसंसाराक्खियाण य । संकिलेसकरं ढाणं दूरओ परिवज्जए॥ --दशवैकालिकसूत्र ५।१६ ३. आदान भाण्डमात्र निक्षेपणा समिति म आदाननिक्षेपविप्रज्ञेयासमितिः सुन्दरचेष्टेत्यर्थः । -आवश्यकहारिभद्रीय वृत्ति ( जैन आचारः सिद्धान्त और स्वरूप से उद्धृत ) ४. चक्खुसा पडिलेहित्ता पमज्जेज्ज जयं जई। आइए णिक्खि वेज्जा वा दुहओवि समिए सया ॥ -उत्तराध्ययनसूत्र २४।१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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