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की जाने वाली सम्यक् प्रवृत्ति समिति कहलाती है ।" उत्तराध्ययन सूत्र में समितियों के पाँच प्रकार बतलाये गये हैं: ईर्या, भाषा, एषणा, आदान, भण्ड- निक्षेपण, उच्चारादि प्रतिस्थापना ।
१ - - ईर्या समिति - ज्ञान - दर्शन - चारित्र का आलम्बन लेकर, विवेकयुक्त होकर गमनागमन करना ईर्या समिति है । इसमें साधु को गमनागमन दिन में ही करना चाहिए, रात्रि में नहीं, क्योंकि रात्रि में हिंसा की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं । ईर्या समिति के सम्यक् परिपालन के लिए आलम्बन, काल, मार्ग व यतना का होना आवश्यक है यथा
क- ज्ञान-दर्शन- चारित्र के पालन से साधक मुक्त अवस्था को प्राप्त कर सकता है ।
ख- इसका पालन दिन में होता है, रात्रि में नहीं । अपवाद मार्ग की बात और है ।
ग- साधक को वन, विषममार्ग व चोर उचक्कों से युक्त मार्ग पर नहीं चलना चाहिए तथा वेश्यालय, अन्तःपुर व सेनाशिविर के पास भी नहीं चलना चाहिए क्योंकि इससे मन में विक्षोभ उत्पन्न हो सकता है ।
घ- चलते समय उचित विवेक रखा जाना चाहिए, संभ्रान्त व मंथर गति से हास्य व चंचलता रहित होकर गमन करना साधु के लिए कल्पनीय है ।
२. भाषा समिति - श्रमण द्वारा अपनी वाणी पर संयम रखना ही भाषा समिति है | श्रमण द्वारा सदैव सत्य, प्रिय व निर्दोष वचन वोले जाने चाहिए। इससे सत्य महाव्रत पुष्ट होता है । क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, वाचालता और विकथा इन दोषों से १. 'सम- एकीभावेन, इतिः प्रवृत्तिः समितिः शोभनैकाग्रपरिणाम-चेष्टेत्यर्थः ' - प्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति
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२. 'इरिया - भासे - सणादाणे, उच्चारे समिईइय मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुती य अट्ठमा'
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उत्तराध्ययन सूत्र २४।२
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