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( २७ ) वादन एवं दिव्य नृत्य आश्चर्यकारी होने से अद्भुत तथा दर्शकों के मनोनुकूल होने से मनोज्ञ था। दर्शकों के कहकहों से नाट्यशाला को गुंजायमान कर रहा था।
तत्पश्चात् नृत्य -क्रीड़ा में प्रवृत्त उन देवकुमारों और देवकुमारिकाओं ने भगवान् महावीर एवं गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों आदि के समक्ष स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, मर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण इन आठ मंगलद्रव्यों का आकार रूप दिप नाट्याभिनय दिखलाया। तत्पश्चात् दूसरी नाट्यविधि प्रस्तुत करने के लिए वे एकत्रित हुए एवं उन्होंने भगवान् महावीर एवं गौतम आदि निर्ग्रन्थों के समक्ष आवर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्य, मागवक, वर्षमानक, मत्स्याण्डक, मकराण्डक, जार, मार, पुष्पावलि, पद्मपत्र, सागरतरंग, वासन्तीलता और पद्मलता के आकार को नाट्यविधि दिखलायी। उसके पश्चात् उन सभी ने भगवान् महावीर के समक्ष ईहामृग, वृषभ, तुरंग-अश्व, नरमानव, मगर, विहग-पक्षी, धालसर्प, किन्नर, रुरु, सरभ, चमर, कुंजर, वनलता और पद्मलता की आकृति रूप दिव्य नाट्यविधि को प्रस्तुत किया। तदनन्तर उन्होंने एकतोवक्र, एक तश्चक्रवाल, द्विघातश्चक्रवाल ऐसी चक्रार्ध-चक्रवाल नामक दिव्य नाट्यविधि प्रस्तुत की । इसी क्रम से उन्होंने चन्दावली, सूविलि, वल बावलि, हंसावलि, एकावलि, तारावलि, मुक्तावलि, कनकावलि, रत्नावलि की विशिष्ट रचनाओं से युक्त दिव्य नाट्यविधि का अभिनय किया। तत्पश्चात् उन्होंने चन्द्रमा और सूर्य के उदय होने की रचनावली उद्गमनोद्गमन नामक दिव्य नाट्यविधि का प्रदर्शन किया। उसके पश्चात् चन्द्र-सूर्य आगमन नाट्यविधि अभिनीत की । तदनन्तर चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण होने पर गगन मण्डल में होने वाले वातावरण की दर्शक आवरणावरण नामक दिव्य नाट्यविधि का प्रदर्शन किया। इसके बाद अस्तमयनप्रविभक्ति नामक नाट्यविधि का अभिनय किया। उसके पश्चात् चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नागमण्डल, यक्षमण्डल, भूतमण्डल, राक्षस मण्डल, महोरगमण्डल और गन्धर्वमण्डल की रचना से युक्त दर्शक मण्डल प्रविभक्ति नामक नाट्यविधि प्रस्तुत की। इसके पश्चात् वृषभमण्डल, सिंहमण्डल की ललित गति अश्व गति आदिगति को दर्शक रचना से युक्त द्रुतविलम्बित प्रवि
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