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________________ ( २५ ) परंपरा में संगीत और नृत्य दोनों का उद्देश्य जिन के प्रति भक्तिभावना का प्रदर्शन ही है मनोरंजन नहीं। इसी उद्देश्य को लेकर जैन कथानकों के आधार पर जैन आचार्यों ने मंचन योग्य अनेक नाटक लिखे हैं । आज भी विशिष्ट महोत्सवों एवं पंचकल्याणकों के अवसर पर जैन नाटकों का मंचन होता है। राजप्रश्नीय में संगीतकला, वादनकला, नृत्यकला और अभिनयकला का एक विकसित रूप हमें मिलता है जो किसी भी स्थिति में ईसा की छठी-सातवीं शती से परवर्ती नहीं है जिसकी संक्षिप्त झांकी नीचे प्रस्तुत है :___ "सूर्याभदेव ने हर्षित चित्त से महावीर को वन्दन कर निवेदन किया कि हे भदन्त ! मैं आपकी भक्तिवश गौतम आदि निर्ग्रन्थों के सम्मुख इस दिव्य देव ऋद्धि, दिव्य देवद्युति एवं दिव्य देवप्रभाव तथा बत्तीस प्रकार की नाट्यविधि को प्रस्तुत करना चाहता हूं। सूर्याभदेव के इस निवेदन पर भगवान महावीर ने उसके कथन का न आदर ही किया और न उसकी अनुमोदना ही की अपितु मौन रहे। तब सूर्याभदेव ने भगवान् महावीर से दो तीन बार पुनः इसी प्रकार निवेदन किया और ऐसा कहकर उसने भगवान् महावीर की प्रदक्षिणा की, उन्हें वन्दन-नमस्कार कर उत्तर-पूर्व दिशा में गया। वैक्रियसमुद्घात करके बहुस्मरणीय भूमिभाग की रचना की जो समतल यावत् रूप, रस, गंध और स्पर्श वाले मणियों में सुशोभित था। उस सम तथा रमणीय भूमि के मध्यभाग में एक प्रेक्षागृह (नाट्यशाला) की रचना की, जो सैकड़ों स्तम्भों पर सन्निविष्ट था। उस प्रेक्षागृह के अन्दर रमणीय भूभाग, चन्दोवा, रंगमंच तथा मणिपीठिका की रचना की और फिर उसने उस मणिपीठिका के ऊपर पादपीठ, छत्र आदि से युक्त सिंहासन की रचना की, जिसका ऊर्ध्वभाग मुक्तादामों से सुशोभित हो रहा था। तब सूर्याभदेव ने भगवान् महावीर को प्रणाम किया और कहा हे भगवन् ! मुझे आज्ञा दीजिए ऐसा कहकर तीर्थंकर को ओर मुख कर उस श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ गया। नाट्यविधि प्रारम्भ करने के लिए उसने श्रेष्ठ आभूषणों से युक्त अपनी दाहिनी भुजा को लम्बवत् फैलाया, जिससे एकसौ आठ देवकुमार निकले। वे देवकुमार युवोचित गुणों से युक्त नृत्य के लिए तत्पर तथा स्वर्णिम वस्त्रों से सुसज्जित थे। तदनन्तर सूर्याभदेव ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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