SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १.२. ) स्मरणीय है कि श्वे० परंपरा में चैत्यवंदन में भी 'इरियाविहि "विराहनाये' नामक पाठ किया जाताहै-जिसका तात्पर्य भी चैत्यवंदन के लिए जाने में हुई एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा का प्रायश्चित्त है : तो दूसरी ओर पूजा विधानों में, होमों में, पृथ्वी, वायु, अप, अग्नि और वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा का विधानएक आन्तरिक असंगति तो है हो । यद्यपि यह भी सत्य है कि चौथीपाँचवी शताब्दी से ही जैन ग्रंथों में इसका समर्थन देखा जाता है। सम्भवतः ईसा की छठी-सातवीं शती तक जैनधर्म में पूजा-प्रतिष्ठा सम्बन्धी अनेक कर्मकाण्डों का प्रवेश हो गया था। यही कारण है कि आठवीं शती में हरिभद्र को इनमें से अनेक का मुनियों के लिए निषेध करना पड़ा। हरिभद्र ने सम्बोधप्रकरण में चैत्यों में निवास, जिनप्रतिमा की द्रव्यपूजा, जिनप्रतिमा के समक्ष नृत्य, गान, नाटक आदि का जैनमुनि के लिए निषेध किया है ।20 "अनुष्ठानपरक जैन साहित्य अनुष्ठान सम्बन्धी विधि-विधानों को लेकर जैन परंपरा के दोनों ही सम्प्रदायों में अनेक ग्रन्थ रचे गये हैं। इनमें श्वेताम्बर परंपरा में उमास्वाति का 'पूजाप्रकरण', पालिप्तसूरि की 'निर्वाणकलिका' अपरनाम 'प्रतिष्ठा-विधि' एवं हरिभद्रसूरि का 'पंचाशकप्रकरण' प्रमुख प्राचीन ग्रन्थ कहे जाते हैं। हरिभद्र के १६ पंचाशकों में श्रावकधर्म पंचाशक, दीक्षा पंचाशक, वंदन पंचाशक, पूजा पंचाशक (इसमें विस्तार से जिनपूजा का उल्लेख है), प्रत्याख्यान पंचाशक, स्तवन पंचाशक, जिनभवन निर्माण पंचाशक, जिनबिंब प्रतिष्ठा पंचाशक, तीर्थयात्रा विधान पंचाशक, श्रमणोपासक प्रतिमा पंचाशक, साधुधर्म पंचाशक, साधुसमाचारी पंचाशक, पिण्डविशुद्धि पंचाशक, शीलअंग पंचाशक, आलोचना पंचाशक, प्रायश्चित्त पंचाशक, दसकल्प पंचाशक, भिक्षुप्रतिमा पंचाशक, तप पंचाशक आदि हैं। प्रत्येक पंचाशक ५०-५० श्लोकों में अपने-अपने विषय का विवरण प्रस्तुत करता है। इस पर चन्द्रकुल के नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि का विवरण भी उपलब्ध है। जैन धार्मिक क्रियाओं के सम्बन्ध में एक दूसरा प्रमुख ग्रन्थ 'अनुष्ठानविधि' है। यह धनेश्वर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy