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________________ ( ११ ) पूजा के लिए कीट आदि से रहित पुष्पों के ग्रहण करने का उल्लेख है । साथ-साथ यह भी बताया गया है कि पूजा के लिए पुष्प के टुकड़े करना या उन्हें छेदना निषिद्ध है । इसमें गंध, धूप, अक्षत, दीप, जल, नैवेद्य, फल आदि अष्टद्रव्यों से पूजा का भी उल्लेख है ।" इस प्रकार यह ग्रंथ भी श्वेताम्बर जैन परम्परा की पूजा-पद्धति का प्राचीनतम आधार कहा जा सकता है । दिगम्बर परम्परा में जिनसेन के महा-पुराण में एवं यतिवृषभ की तिलोयपण्णत्ति में जिनप्रतिमा की पूजा के उल्लेख हैं । इस समग्र चर्चा में हमें ऐसा लगता है कि जैनपरम्परा में सर्वप्रथम धार्मिक अनुष्ठान के रूप में षडावश्यकों का विकास हुआ। उन्हीं षडावश्यकों में स्तवन या गुण-स्तुति का स्थान था । उसी से आगे चलकर भावपूजा और द्रव्यपूजा की कल्पना सामने आई । उसमें भी द्रव्यपूजा का विधान केवल श्रावकों के लिए हुआ । तत्पश्चात् श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परंपराओं में जिनपूजा-सम्बन्धी जटिल विधिविधानों का विस्तार हुआ, यद्यपि वह सभी ब्राह्मण परंपरा का प्रभाव था । फिर आगे चलकर जिनमंदिर के निर्माण एवं जिनबिंबों की प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में अनेक प्रकार के विधि-विधान बने । पं० फूलचंदजी सिद्धान्त शास्त्री ज्ञानपीठ पूजांजलि की भूमिका में और स्व० डॉ० नेमिचंदजी शास्त्री ने अपने एक लेख पुष्पकर्म -देवपूजा : विकास एवं विधि- जो उनकी पुस्तक भारतीय संस्कृति के विकास में जैन वाङ्मय का अवदान ( प्रथम खण्ड ) पृ० ३७९ पर प्रकाशित है में इस बात को स्पष्टरूप से स्वीकार किया है कि जैन परंपरा में पूजा- द्रव्यों का क्रमशः विकास हुआ है । यद्यपि पुष्पपूजा प्राचीनकाल से प्रचलित है फिर भी यह जैन परंपरा के आत्यन्तिक अहिंसा सिद्धान्त से मेल नहीं खाती है । एक ओर तो पूजा विधान का यह पाठ - जिसमें मार्ग में होने वाली एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा का प्रायश्चित्त हो ईर्यापथे प्रचलताद्य मया प्रमादात्, एकेन्द्रियप्रमुखजीवनिकाय बाधा । निर्तिता यदि भवेव युगान्तरेक्षा, मिथ्या तदस्तु दुरितं गुरुभक्तितो मे ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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