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जैनश्रमण-स्वरूप और समीक्षा - लेखक डॉ० योगेशचन्द्र जैन, मुक्तिप्रकाशन, अलीगंज, (एटा) उ० प्र०, प्रथम संस्करण १९९०, पृ० २२ + ३२०; मूल्य ३०रु०, साइज- डिमाई (हार्ड बाइण्ड )
लेखक द्वारा राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर की पी-एच० डी० उपाधि हेतु प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का प्रस्तुत कृति मुद्रित रूप है । यह ५ अध्यायों में विभक्त है । प्रथम अध्याय में विभिन्न धार्मिक, ऐतिहासिक एवं साहित्यिक पृष्ठभूमि में जैन श्रमणों का विवेचन है । साथ ही श्वेताम्बर दिगम्बर सम्प्रदाय के प्रमुख संघों का सक्षिप्त परिचय दिया है । द्वितीय अध्याय 'श्रमण का स्वरूप' में महाव्रत और ३८ मूल गुणों के श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय की दृष्टि से विवेचन के साथ श्रमण दीक्षा की पात्रता, दीक्षा ग्रहण विधि, पिच्छि कमण्डलु एवं उत्सर्ग अपवाद मार्ग को भी संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है ।
तृतीय अध्याय में सम्पूर्ण श्रमण आचार संहिता का विवेचन प्रस्तुत करने के साथ आहार चर्या, एकल विहार, शरीर त्याग तथा शिथिलाचारी श्रमणों का विवेचन करते हुए नामोल्लेख पूर्वक उदाहरण दिये गये हैं । नामोल्लेखपूर्वक समालोचना स्तरीय ग्रन्थों की गरिमा को खण्डित करती है ।
चतुर्थ अध्याय में श्रमणों के विभिन्न भेद-प्रभेद का वर्णन करते हुए अत्यन्त संक्षेप में श्रमणों के धार्मिक, दार्शनिक आदि विभिन्न क्षेत्रों में अवदान को प्रस्तुत किया गया है ।
ग्रन्थ में विवेचित प्रकरणों पर सैद्धान्तिक दृष्टि से विचार करने के पश्चात् वर्तमान काल में श्रमणों के आचार और सिद्धान्त में क्या और कितना अन्तर है इसका बेवाक विवरण दिया गया है, जो लेखक एवं कृति को तद्विषयक अन्य ग्रन्थों से अलग कर देता है ।
पुस्तक का कलेवर सुन्दर है, छपाई भी अच्छी है । परन्तु प्रूफ संशोधन में कुछ त्रुटियाँ रह गई हैं, लेखक का प्रयास प्रशंसनीय है पुस्तक निश्चित रूप से संग्रहणीय है ।
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