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साहित्य-सत्कार नायधम्मकहाओ-सम्पादक : मुनि श्री जम्बूविजयजी; प्रकाशक : महावीर जैन विद्यालय, बम्बई-३७; मूल्य : १२५ रु०; संस्करण : प्रथम १९८९ । __ महावीर जैन विद्यालय जैन आगमों के प्रामाणिक संस्करणों के प्रकाशन का जो महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है वह अभिनन्दनीय है। उसी क्रम में प्रस्तुत कृति भी विद्वत् जगत् के समक्ष उपस्थित हुई है। ग्रन्थ में समीक्षित मूल पाठ के अतिरिक्त पाठान्तरों को भी समाहित किया गया है जो कि सम्पादक के कठिन श्रम और अध्ययन गाम्भीर्य के परिचायक हैं। पाठान्तर ग्रन्थ के अर्थ-निश्चयन में अनेक बार महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। मुनि श्री ने यह कार्य करके विद्वत् वर्ग पर अत्यन्त उपकार किया है। पुनः प्रथम परिशिष्ट के रूप में १२५ पृष्ठों की शब्द सूची दी गयी है जो शोधकर्ताओं के लिए बड़ी उपयोगी है। द्वितीय परिशिष्ट में अकारादि क्रम से गाथाओं की सूची दी गयी है और तृतीय परिशिष्ट में उन ग्राह्य पाठों का संकलन है जो "जाव या वण्णवो" शब्द से निर्दिष्ट है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में जम्बू-विजय जी की गुजराती और अंग्रेजी तथा देवेन्द्र मुनि शास्त्री की हिन्दी में विद्वत्तापूर्ण भूमिकाएँ भी दी गयी हैं, जो ग्रन्थ की विषयवस्तु और उसके ऐतिहासिक तथ्यों को स्पष्ट करने में सहायक है। प्रकाशन सुन्दर और निर्दोष है। मुनिश्री की इस विद्या-सेवा के लिए हम उनके प्रति श्रद्धावनते हैं । प्रकाशक संस्था भी बधाई के योग्य है। आशा है मुनिश्री जम्बूविजय जी के मार्गदर्शन में महावीर विद्यालय सम्पूर्ण आगम साहित्य के प्रकाशन के इस महान कार्य को शीघ्र ही पूरा कर लेगा।
"जैन संस्कृत महाकाव्य' लेखक : डॉ० सत्यव्रत; प्रकाशक : जैन विश्वभारती, लाडन; संस्करण : प्रथम १९८१ ।
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