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के अनुसार "अ" या "आ" के सिवाय अन्य स्वरों के भी पश्चात् अवशिष्ट 'अ' "आ" की "य" श्रुति मिलती है । अतः प्रतियों के अनुसार ही "य" श्रुति अपनाई गई है।
रूपरचना की दृष्टि से पुलिंग प्रथमा एकवचन के लिये प्रायः-ओ विभक्ति का ही प्रयोग हुआ है। शेष विभक्तियाँ सामान्य है। विभक्तियों का व्यत्यय भी देखा गया है, जैसे तृतीया के लिए पंचमी और पंचमी के लिए द्वितीया, षष्ठी और सप्तमी ।
क्रियाओं के प्रत्यय लगभग सामान्य हैं। कृदन्तों में पूर्वकालिक कृदन्त के प्रत्यय ( ऊण, ऊणं) और हेत्वर्थकृदन्त के प्रत्यय (- उं) का एक दूसरे के लिए प्रयोग मिलता है। पूर्वकालिक कृदन्त के लिए हेत्वर्थ कृदन्त का प्रयोग १५.३% हुआ है और हेत्वर्थकृदन्त के लिए पूर्वकालिक कृदन्तों का प्रयोग ३०% हुआ है।
उपदेशमाला में छः पद्यों को छोड़कर शेष सभी पद्य गाथा छंद में हैं। छः पद्यों में से चार (नं० १३९, १८४, १८५, ३४१) अनुष्टुप् छन्द में हैं, एक ( २०८) रथोद्धता और एक ( ४२६ ) विपरीत आख्यानकी छन्द में है।
इस ग्रन्थ के रचयिता जैनाचार्य धर्मदासगणि माने जाते हैं। अनुश्रुतियाँ एसी हैं कि वे भ० महावीर के प्रत्यक्ष शिष्य थे लेकिन ग्रन्थ में वज्रस्वामी आदि के उल्लेख एवं भाषाकीय परीक्षण के आधार पर उनका समय ई. सं. पांचवी शताब्दी से पूर्व नहीं ठहरता है । लेखक की अन्य कोई रचना प्राप्त नहीं होती है ।
विषयवस्तुगत अध्ययन के अन्तर्गत उपदेशमाला की टीका में प्राप्त कथानकों की तुलना आगम और उनकी नियुक्तियों, चूर्णियों, भाष्यों और टीकाओं के कथानकों से की गई है । कथानकों में जहाँ भेद आता है उनको फुटनोट में उनके सन्दर्भ के साथ दिया गया है। जहाँ कथानक समान हैं वहाँ फुटनोट में केवल सन्दर्भ दे दिये गये हैं। नीचे उन कथानकों की सूची दी जाती है जिनका उल्लेख आगमों में मिलता है :
१. चन्दनबाला, २. भरत चक्रवर्ती, ३. प्रसन्नचन्द्र, ४. बाहुबली, ५. सनत्कुमार, ६. ब्रह्मदत्त चक्री, ७. उदायीनृप के हत्यारे की कथा,
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