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________________ ( ६८ ) प्रमाण के अनुसार पारस नामक श्रेष्ठी ने भूमि से प्रतिमा प्राप्त कर चैत्य बनवाया तथा वादिदेवसूरि ने वि० सं० ११९९ में मूर्ति की प्रतिष्ठा की और वि०सं० १२०४ में चैत्यशिखर स्थापित किया । पुरातनप्रबंधसंग्रह की इस मान्यता का समर्थन निम्नलिखित ग्रन्थों से भी होता है --- . १-उपदेशतरंगिणी -१ रत्नमंदिरगणि ( वि० सं० १५१७ )। २--- उपदेशसप्ततिः २- सोमधर्मसूरि ( वि० सं० १५०३ )। ३-धर्मसागरीय तपगच्छपट्टावली .--१५ वीं शती। परन्तु उक्त सभी ग्रन्थ पश्चात् कालीन हैं और इनका आधार ग्रन्थ पुरातनप्रबंधसंग्रह भी कल्पप्रदीप के बाद का है, अत. जिनप्रभ की बात ज्यादा प्रामाणिक मानी जा सकती है। भिन्न गच्छ के होते हुए भी जिनप्रभसूरि ने गच्छभेद की संकीर्णता से दूर रहते हुए वास्तविक तथ्य को ही लिखा होगा। इसप्रकार स्पष्ट है कि राजगच्छीय शीलभद्रसूरि के शिष्य वादिन्द्र धर्मघोषसूरि ने वि० सं० ११८१ में फलवद्धिकाग्राम में नवनिर्मित जिनालय में पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की और चैत्य शिखर पर कलशारोहण किया। आज यहाँ जो पार्श्वनाथ का मंदिर है, संभवतः वही पुराना मंदिर हो सकता है । इस जिनालय से दो अभिलेख मिले हैं, उनमें से एक १. “श्रेष्ठि पारसदृष्टान्त:' उपदेशतरंगिणी, पृ० ११० २. संपादक-अमृतलाल मोहनलाल-उपदेशसप्तति "श्रीफलवधितीर्थोत्पत्तौ पासलिश्रावकप्रबन्ध' पृ० ३२-३३ ३. तपगच्छपट्टावली, पृ० १२९ ४. संवत् १२२१ मार्गसिर सुदि ६ श्रीफलवद्धि कायां देवाधिदेव श्री पार्श्वनाथ चैत्ये श्री प्राग्वाट वंसी (शी) य रोपि मुणि मं० दसाढ़ाभ्यो आत्मश्रेयार्थ श्री चित्रकूटीय सिलफट सहितं चन्द्रको प्रदत्तः शुभं भवत् ।। नाहर, पूरनचन्द-जैनलेखसंग्रह भाग १, लेखाङ्क ८७० चैत्यो नरवरे येन श्री सल्लक्ष्मट कारिते। पंडपो मंडनं लक्ष्या कारित: संघ भास्वता।। १ ॥ अजयमेरु श्री वीर चैत्ये येन विधापिता श्री देवा बालका: ख्याताश्चतुविंशति शिखराणि ॥२।। श्रेष्ठी श्री मुनि चंद्राख्यः श्री फलवद्धिका पुरे उत्तान पट्ट श्री पार्श्वचैत्येऽचीकरदद्भ भूतं ॥ ३ ॥ वही, लेखाङ्क ८७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525003
Book TitleSramana 1990 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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