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________________ जो कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य मिले हैं उससे ऐसा लगता है कि निर्ग्रन्थ संघ अपने जन्मस्थल बिहार से दो दिशाओं में अपने प्रचार अभियान के लिए आगे बढ़ा। एक वर्ग दक्षिण-बिहार एवं बंगाल से उड़ीसा के रास्ते तमिलप्रदेश गया और वहीं से उसने श्रीलंका और सुवर्णदेश (जावा-सुमात्रा आदि ) की यात्राएं की। लगभग ई०पू० दूसरी शती में बौद्धों के बढ़ते प्रभाव के कारण निर्ग्रन्थों को श्रीलंका से निकाल दिया गया। फलतः वे पुनः तमिलप्रदेश में आ गये। तमिलनाडु में लगभग ई०पू० प्रथम-द्वितीय शती से ब्राह्मी लिपि में अनेक जैन अभिलेख मिलते हैं, जो इस तथ्य के साक्षी हैं कि निर्ग्रन्थ संघ महावीर के निर्वाण के लगभग दो-तीन सौ वर्ष पश्चात् ही तमिलप्रदेश में पहुँच चुका था। मान्यता तो यह भी है कि आचार्य भद्रबाहु चन्द्रगुप्त मौर्य को दीक्षित करके दक्षिण गये थे। यद्यपि इसकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता निविवाद नहीं है, क्योंकि घटना का उल्लेख करने वाला अभिलेख लगभग छठी-सातवीं शती का है। आज भी तमिलनाडु में जैनों की विपुल संख्या है और वे भारत में जैन धर्म के अनुयायियों की प्राचीनतम परम्परा के प्रतिनिधि हैं। यद्यपि बिहार, बंगाल और उड़ीसा की प्राचीन जैन परम्परा कालक्रम में विलुप्त हो गयी है, किन्तु सराक जाति के रूप में उस परम्परा के अवशेष आज भी शेष हैं । 'सराक' शब्द श्रावक का ही अपभ्रंश रूप है और आज भी इस जाति में रात्रिभोजननिषेध जैसे कुछ संस्कार शेष हैं। उत्तर और दक्षिण के निर्गन्थ श्रमणों में आधार भेद : __ दक्षिण में प्रविष्ट निर्ग्रन्थ संघ, अपने साथ विपुल प्राकृत जैन साहित्य तो नहीं ले जा सका, क्योंकि उस काल तक जैनागम साहित्य की पूर्ण रचना ही नहीं हो पाई थी, किन्तु वह अपने साथ श्रुत परम्परा से कुछ दार्शनिक विचारों एवं महावीर के कठोर आचारमार्ग को ही लेकर चला था, जिसे उसने बहत काल तक सुरक्षित रखा । आज की दिगम्बर परम्परा का पूर्वज यही दक्षिणी अचेलनिर्ग्रन्थसंघ है। इस सम्बंध में अन्य कुछ मुद्दे भी ऐतिहासिक दृष्टि से विचारणीय हैं । महावीर के अपने युग में भी उनका प्रभावक्षेत्र मुख्यतया दक्षिण बिहार ही था जिसका केन्द्र राजगृह था, जबकि बौद्धों एवं पाश्वपित्यों का प्रभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525003
Book TitleSramana 1990 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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