SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करते रहे। भगवान् महावीर जैनधर्म के अन्तिम तीर्थङ्कर थे। तत्कालीन अठारह देशों के गणराज्य के अध्यक्ष महाराजा चेटक भगवान् महावीर के परम उपासक थे। वे प्रबल पराक्रमी और राजनीतिविशारद थे। मगधाधिपति श्रेणिक भी भगवान् के परमभक्त थे । भगवान् महावीर के अहिंसा उपदेश से उत्प्रेरित होकर वह अपने राज्य में 'अमारीपडह' बजवाता है अर्थात् घोषणा करवाता है कि राज्य में कोई पशु-वध न करे ।२ कम्बोज, पांचाल, कोशल, काशी, वत्स, श्रावस्ती, वैशाली, मगध, बंग, कुशस्थल, अंग, घन, कटक, आन्ध्र, कलिंग, अवन्ती, सिन्धुसौवीर आदि के राजा भी महावीर के अनुयायी थे। नौ मल्ल और नौ लिच्छवी राजा भी महावीर के अनन्य उपासक थे। वे भगवान् महावीर के निर्वाण के समय वहीं उपस्थित थे। उस समय जैन संस्कृति का भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभुत्व था। उसके पश्चात् सम्राट चन्द्रगुप्त, सम्राट सम्प्रति, सम्राट खारवेल गुर्जर नरेश जयसिंह और कुमारपाल जैन संस्कृति के परम उपासक रहे हैं। उन्होंने अपने राज्य में अहिंसा सिद्धान्त का प्रचार किया था। इतिहास की प्रारंभिक कक्षाओं में ही यह पढ़ाया जाता है कि वह युग (गुप्तकाल) भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग था। पुरातत्त्ववेत्ता पी० सी० रायचौधरी के शब्दों में कहा जाय तो----"श्रेणिक, कणिक, चन्द्रगुप्त, सम्प्रति,खारवेल तथा अन्य राजाओं ने जैनधर्म को अपनाया। वे शताब्दियाँ भारत के हिन्दू-शासन के वैभवपूर्ण युग थे और उन्हीं युगों में जैनधर्म जैसा महान् धर्म प्रचारित हुआ। बादशाह अकबर भी प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री हीरविजयसूरि से प्रभावित हुए थे। अमेरिकी दार्शनिक विलड्यूरेन्ट ने लिखा है'अकबर ने जैनियों के कहने से शिकार छोड़ दिया था और कुछ नियत तिथियों पर पशु-हत्याएं रोक दी थीं। जैन धर्म के प्रभाव से अकबर ने अपने द्वारा प्रचारित दीन-इलाही नामक सम्प्रदाय में मांस भक्षण का निषेध रखा था।४ अतीत का इतिहास इस बात का साक्षी है कि १. उपासकदशांग सूत्र अ० ८ २. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र १०-१३-२४८ ३. जैनभारती, वर्ष ६, अङ्क ४१, पृ० ६६७ 4. OUR ORIENTAL HERITAGE, Page-467-471 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525003
Book TitleSramana 1990 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy