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________________ ( १६ ) की अनुमति से विदेश भेजे जायें। यह निर्णय पूर्णतः आचार्य और संघ की सर्वोच्च समिति के आधीन हो कि किस श्रमण या श्रमणी को विदेश भेजा जाये। २--जिस श्रमण या श्रमणी को विदेश यात्रा के लिए भेजा जाये उसे उस देश की भाषा और जैनशास्त्र तथा दर्शन का गम्भीर अध्ययन हो और उनके ज्ञान का प्रमाणीकरण और उनकी जैनधर्म के प्रति निष्ठा का सम्यक् मूल्यांकन हो। ३-विदेश यात्रा धर्म संस्कार जागृत करने के लिए हो न कि घूमने फिरने के लिए। अतः प्रथमतः उन्हीं क्षेत्रों में यात्रा की अनुमति हो; जहाँ जैन परिवारों के निवास हों और उस क्षेत्र में वे अपने परम्परागत नियमों का उसी प्रकार पालन करें। ४-अपरिपक्ववय और अपरिपक्व विचारों के श्रमण-श्रमणियों को किसी भी परिस्थिति में विदेश यात्रा की अनुमति न दी जाये। ५- जिस प्रकार प्राचीनकाल में बड़ी नदियों को नौका से पार करने की वर्ष में संख्या निर्धारित होती थी, उसी प्रकार वर्ष में एक-या दो से अधिक यात्राओं की अनुमति न हो। जिस क्षेत्र में वे जायें, वहाँ रुककर संस्कार जागरण का कार्य करें, न कि भ्रमण-सुख के लिए यात्राएँ करते रहें। ६--वाहन यात्रा को अपवाद् मार्ग ही माना जाये और उसके लिए समुचित प्रायश्चित्त की व्यवस्था हो । देश में भी आपवादिक परिस्थितियों में अथवा किसी सुदूर प्रदेश की यात्रा ज्ञान-साधना अथवा धर्म के प्रसार के लिए आवश्यक होने पर ही वाहन द्वारा यात्रा की अनुमति दी जाये। बिना अनुमति के वाहन प्रयोग सर्वथा निषिद्ध ही मानी जाये। इस प्रकार विशिष्ट नियंत्रणों के साथ ही वाहन प्रयोग और विदेश यात्रा की अनुमति अपवाद् मार्ग के रूप में ही मानी जा सकती है। उसे सामान्य नियम कभी भी नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि भूतकाल में भी वह एक अपवाद मार्ग ही था। इस प्रकार आचार मार्ग में युगानुरूप परिवर्तन तो किये जा सकते हैं परन्तु उनकी अपनी उपयोगिता होनी चाहिए और उनसे जैन धर्म के शाश्वत मूल्यों कोई खरोंच नहीं आनी चाहिए। -निदेशक, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान भाराणसी www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.525003
Book TitleSramana 1990 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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