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________________ ( १५ ) किन्तु इस हेतु आचार-नियमों में कुछ परिवर्तन तोलानाही होगा। धर्म प्रसार के लिए जैन श्रमण देश-विदेश की यात्राएँ प्राचीनकाल से ही करते रहे । महावीर के युग में जैन मुनियों ने यात्रा में बाधक नदियों को नावों से पार करके अपनी यात्राएँ की थीं। मात्र नदियों को पार करके ही नहीं महासागर को जहाजों से पार करके भी जैन मुनियों ने लंका और सुवर्णद्वीप तक की यात्राएँ की थीं, ऐसे ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध हैं । अतः आज यदि विदेशों में जैनधर्म के प्रसार के लिए कोई जैन मुनि वायुयान से यात्रा कर लेता है तो वह कोई बहुत बड़ा अपराध करता है, यह नहीं कहा जा सकता। किन्तु जहाँ पाद विहार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, वहाँ भी वाहन प्रयोग तो उचित नहीं माना जा सकता। पुनः हमें यह भी विचार करना होगा वह विदेश यात्रा जैनधर्म की गरिमा को स्थापित करती है या उसे खण्डित करती है। विदेशों में जैन मुनि जैनधर्म का गौरव तभी स्थापित कर सकता है जब उसकी अपनी जीवनचर्या कठोर एवं संयमपरक हो। हमें इस तथ्य को स्मरण रखना है कि जैन श्रमणों की सुविधावादी प्रवृत्ति जैनधर्म के लिए भी उतनी खतरनाक सिद्ध होगी, जैसी कभी बौद्ध धर्म के लिए हुई थी, कि वह अपनी मातृभूमि में ही अपना अस्तित्व खो बैठी। विदेश यात्रा कोई बड़ा अपराध नहीं। अपराध है जैन श्रमणों की बढ़ती हुई सुविधावादी प्रवृत्ति । आज का जैन श्रमण इतना सुविधावादी और भोगवादी होता जा रहा है कि एक सामान्य जैन गृहस्थ की अपेक्षा भी उसका खान-पान और सम्पूर्ण जीवन शैली अधिक सुविधासम्पन्न बन रही है। एक श्रमण के लिए वर्ष में होने वाला खर्च सामान्य गृहस्थ से कई गुना अधिक होता है। ___आज के जैन श्रमण की जीवन शैली इतनी सुविधाभोगी हो गई है कि वह जन-सामान्य की अपेक्षा सम्पन्न श्रेष्ठिवर्ग के आसपास केन्द्रित हो रहा है और उनकी जीवन शैली उसे और अधिक सुविधाभोगी बना रही है—-यदि वाहन प्रयोग सामान्य हो गया तो जैन श्रमण जन-साधारण और ग्रामीण जैन परिवार से बिलकुल कट जायेगा। वाहन सुविधा और विदेश यात्रा को युग की आवश्यकता मानकर भी उस सम्बन्ध में कुछ मर्यादाएँ निश्चित करना होंगी। १-चरित्रवान् और विद्वान् श्रमण या श्रमणी ही आचार्य और संघ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525003
Book TitleSramana 1990 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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