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________________ जैनविद्या 26 मनुष्य के लिए सम्यक्त्व निश्चय से सार है क्योंकि सम्यक्त्व के बिना ज्ञान मिथ्या होता है। सम्यक्त्व से चारित्र होता है क्योंकि सम्यक्त्व बिना चारित्र भी मिथ्या ही है, चारित्र से निर्वाण होता है || 31॥ 54 पहले जो सिद्ध हुए हैं वे सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चारों के संयोग से ही हुए हैं, यह जिनवचन है, इसमें सन्देह नहीं है। 321 अतः यह निष्कर्ष बिल्कुल गलत होगा कि इन्होंने केवल सम्यग्दर्शन का ही कथन किया है। इस बात का एक और भी प्रबल प्रमाण है कि इनके द्वारा मोक्षपाहुड, चारित्रपाहुड और शीलपाहुड आदि अन्य ग्रन्थ भी रचित हैं। परन्तु मूल बात यह है कि सम्यग्दर्शन की नींव पर ही ज्ञान और चारित्र निर्भर करते हैं। इन्होंने ही 'प्रवचनसार' ग्रन्थ में स्पष्ट कहा है कि 'चारित्तं खलु धम्मो'। तथा ज्ञान की महत्ता को स्पष्ट करते हुए आचार्य कहते हैं कि - सम्मत्तादो णाणं णाणादो सव्वभाव उवलद्धी । उवलद्धपयत्थे पुण सेयासेय वियाणेदि ।।15।। अर्थात् सम्यक्त्व से ज्ञान होता है, ज्ञान से समस्त पदार्थों की उपलब्धि होती है और समस्त पदार्थों की उपलब्धि होने पर यह जीव कल्याण और अकल्याण को विशेष रूप से जानता है। - - निश्चय सम्यग्दर्शन और व्यवहार सम्यग्दर्शन का एकसाथ वर्णन करना भी आचार्य. कुन्दकुन्द का वैशिष्ट्य है, क्योंकि प्रायः ऐसा देखा जाता है कि ग्रन्थ रचयिता आचार्य या तो व्यवहार सम्यग्दर्शन का लक्षण प्रतिपादित कर आगे बढ़ जाते हैं, या केवल निश्चय सम्यग्दर्शन को बतलाकर आगे बढ़ जाते हैं लेकिन आचार्य कुन्दकुन्द ने ऐसा नहीं किया, उन्होंने दोनों को एक साथ रखा। यथा - छद्दव्व णवपयत्था पंचत्थी सत्त तच्च णिद्दिट्ठा । सद्दहइ ताण रूवं सो सद्दिट्ठी मुणेयव्वो ।।19।। अर्थात् छह द्रव्यों, नौ पदार्थ पाँच अस्तिकाय और सात तत्त्व कहे गये हैं। उनके स्वरूप का जो श्रद्धान करता है उसे सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए । व्यवहार नय से जीवादि तत्त्वों का श्रद्धान करना सम्यक्त्व है और निश्चय नय से निज आत्मा का श्रद्धान करना सम्यक्त्व है, ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने कहा है। यथा -
SR No.524771
Book TitleJain Vidya 26
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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