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________________ जैनविद्या 25 मूलाचार पर उस समय अनेक टीकाएँ प्रचलित थीं। इनमें कदाचित् एक प्राकृत टीका भी थी (पृ. 643, 744, 763)। इसी संदर्भ में इन्होंने टिप्पणकारों के रूप में जयनन्दी और श्रीचन्द्र के नामों का भी उल्लेख किया है। अमितगति-कृत 'संस्कृत आराधना' इनके समक्ष थी ही। दोनों आराधनाओं में से शिवार्य की आराधना का पाठ इन्हें अधिक अनुकूल लगा। रामसेन के तत्त्वानुशासन और शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव से भी इन्होंने कुछ पद्य उद्धृत किये हैं। सिद्धान्तरत्नमाला और विदग्धप्रीतिवर्धिनी से भी इन्होंने उद्धरण दिये हैं पर ये ग्रन्थ शायद अभी तक उपलब्ध नहीं हुए। 3. किसी अज्ञात लेखक की आराधना पंजिका (लगभग 15वीं शती), 4. शिवजित् अरुण कृत (सं. 1818), भावार्थ दीपिका 5. किसी दिगम्बराचार्य द्वारा प्राकृत टीका की गई है जो आज उपलब्ध नहीं है। 6. पं. आशाधर स्थान-स्थान पर 'अन्ये' और 'अपरे' शब्दों का प्रयोग करते हैं जिससे ऐसा आभास होता है कि भगवती आराधना पर कुछ और भी संस्कृत टीकाएँ थीं जो आज उपलब्ध नहीं हैं। 7. अमितगति-कृत संस्कृत पद्यानुवाद तो उपलब्ध है ही। इसके अतिरिक्त दो संस्कृत पद्यानुवाद और भी होने चाहिए जिनका उल्लेख आशाधर ने किया 8. जयनन्दि और श्रीचन्द्र-कृत दो टिप्पणों का भी उल्लेख आशाधर ने किया है। इनमें श्रीचन्द्र कदाचित् वही हों जिन्होंने पुष्पदन्त के उत्तरपुराण तथा रविषेण के पद्मचरित पर टिप्पण लिखे थे। ये भोजदेवकालीन (10वीं शती) थे। आराधना कथाकोश भगवती आराधना' की विजयोदया टीका में अनेक कथाएँ दी हैं जिनका सम्बन्ध विशेषरूप से आराधक की मरणावस्था से रहा है। विभिन्न गणगच्छ के साधु मरणासन्न व्यक्ति को समाधिमरण-काल में ये कथाएँ सनाया करते थे ताकि वह विकथाओं और सांसारिक आसक्तियों से बच सके (गा. 651-655)। इन कथाओं को उत्तराध्ययन और नियुक्तियों में खोजा जा सकता है। हरिषेण, प्रभाचन्द्र, नयनन्दि, नेमिदत्त और श्रीचन्द्र के कथाकोशों में तो आराधना की गाथाओं को उद्धृत करते हुए कथाएँ दी गई हैं। आशाधर ने भले ही उनका उल्लेख नहीं
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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