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________________ जैनविद्या 25 ___10 किया हो पर उन्होंने प्राकृत टीका और उसमें उल्लिखित कथाओं की ओर संकेत अवश्य किया है (गा. 35-44)। हरिषेण आदि कथाकारों ने कदाचित् वहीं से कथा-स्रोत लिये हों। श्रीचन्द्र (11वीं शती) ने अपने अपभ्रंश कथाकोश में यह संकेत किया है कि ये कथाएँ जिनेन्द्र से गणधर, गणधर से श्रेणिक, और श्रेणिक से परम्परागत रूप से शिवकोटि मुनीन्द्र तक पहुँची। मूलाराधना में इन कथानकों का उपयोग बड़े सुन्दर ढंग से हुआ है। श्रीचंद्र ने गाथाओं को स्पष्ट करने में इन कथाओं का उपयोग किया है। वे पहले गाथा का अर्थ देते हैं और फिर कथा देकर उसकी व्याख्या करते हैं। इसलिए उन्होंने ऐसी गाथाओं को चुना है जिन्हें कथा के माध्यम से व्याख्यापित किया जा सकता है। इसमें संस्कृत का भी उपयोग किया गया है। प्रभाचन्द्र (11वीं शती) का कथाकोश संस्कृत गद्य में है और संस्कृतप्राकृत के उद्धरणों से भरा हुआ है। इसमें ऐसी धर्मकथाएँ दी गई हैं जिनमें चारों तरह की आराधनाओं के आराधकों का वर्णन है। इसे 'आराधना सत्कथा प्रबन्ध' कहा गया है। इसमें 'भगवती आराधना' की गाथाओं के साथ पात्रकेशरी, अकलंक, सनतकुमार, समन्तभद्र और संजयन्त की कथाएँ दी गई हैं और सम्यक्त्व के आठ गुणों का वर्णन किया गया है। इसमें प्रभाचन्द्र पण्डित और प्रभाचन्द्र भट्टारक का नाम आया है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि इस ग्रन्थ की रचना इन दोनों लेखकों ने अलग-अलग की हो। नेमिदत्त (16वीं शती) का ‘आराधना कथाकोश' . प्रभाचन्द्र के 'कथाकोश' पर आधारित है। अन्तर यह है कि प्रभाचन्द्र ने 122 कथाएँ दी हैं जबकि नेमिदत्त ने 114। उन्होंने कथाओं की पुनरावृत्ति छोड़ दी है। लेखक ने विद्यानन्दि, मल्लिषेण, सिंहनन्दि और श्रुतसागर भट्टारकों का उल्लेख किया है। नयनन्दि की ‘आराधना' अपभ्रंश में है और उसके दो भाग हैं - एक भाग में 56 सन्धियाँ हैं और दूसरे भाग में 58 सन्धियाँ हैं। ‘बड्ढाराधने' नामक एक कथाकोश कन्नड़ भाषा में उपलब्ध है। मूडबिद्री के अनुसार इसे शिवकोट्याचार्य की कृति कहा गया है। कोल्हापुर की ताड़पत्र प्रति (क्र. 45) में भी लगभग यही नाम मिलता है। इसमें 19 कथाएँ दी गई हैं (गा.क्र. 1539-1557) - ई पेल्द पत्तोवत्तु कथेगल (1) शिवकोट्याचार्यद् पेल्द बोड्डाराधनेय कवचवु मंगल महाश्री। मंत्रशास्त्र में 'कवच' शब्द का
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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