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________________ जैनविद्या 24 सीमित रहता है। वह दो पदार्थों - 'अ' और 'ब' के अनेक अन्वयव्यतिरेकी दृष्टान्तों का प्रत्यक्ष करके तथा यह विचार करके कि अभी तक 'ब' के नहीं होने पर 'अ' के विद्यमान होने का एक भी दृष्टान्त उपलब्ध नहीं हआ है, 'अ' का 'ब' के साथ सार्वभौमिक और त्रैकालिक व्याप्ति सम्बन्ध स्थापित कर देता है। उसका यह निश्चय व्याप्ति सम्बन्ध का मिथ्या ज्ञान है क्योंकि वह 'अ' का 'ब' से अविनाभाव सम्बन्ध अर्थात् 'ब' का अभाव होने पर 'अ' का सद्भाव असम्भव है, को नहीं जानता।' व्यक्ति को इस अविनाभाव सम्बन्ध का ज्ञान तभी हो सकता है जबकि वह परीक्षक हो; उसे यह जिज्ञासा हो कि 'अ' सदैव 'ब' के साथ ही क्यों उपलब्ध हो रहा है, यह सहोपलब्धि एक आकस्मिक घटना है या ऐसा कारण-कार्य सम्बन्ध आदि किसी नियम के अनुसार हो रहा है? जब व्यक्ति अपने इन प्रश्नों के समाधान हेतु अन्वेषणात्मक विधि का अवलम्बन लेता है तथा इसके द्वारा दो वस्तुओं के नियत साहचर्य को निर्धारित करनेवाले नियमों को जानता है तब ही उसे उन वस्तुओं में विद्यमान अविनाभाव सम्बन्धरूप व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान होता है और उसका यह ज्ञान यथार्थ है। अवग्रह द्वारा सामान्यरूप से ज्ञात हुए तथ्यों के विशिष्ट स्वरूप के प्रति जिज्ञासा और उस जिज्ञासा के निवारण हेतु किये जानेवाले अन्वेषणात्मक प्रयत्न को 'ईहा' कहा जाता है।' विशेष घटनाओं के प्रत्यक्ष के स्तर पर ईहा एक क्षणिक घटना है लेकिन व्याप्ति सम्बन्ध के निश्चय की प्रक्रिया के क्षेत्र में, जो कि वैज्ञानिक नियमों के अनुसंधान की प्रक्रिया भी है, ईहा एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है। इस क्षेत्र में व्यक्ति सामान्यरूप से जान लिये गये तथ्यों के विशिष्ट स्वरूप के निश्चय हेतु पहले 'यह होना चाहिये' इस आकार में प्राक्कल्पना का निर्माण करता है तथा इस प्राक्कल्पना की दिशा में तथ्यों की खोज़ करता है। यदि इस प्रयास के परिणामस्वरूप उस प्राक्कल्पना की असत्यता सिद्ध होती है तो वह नयी प्राक्कल्पना का निर्माण कर उसकी दिशा में अनुसन्धान कार्य करता है। यह क्रम तबतक जारी रहता है जबतक कि व्यक्ति को अपनी समस्या का समाधान प्राप्त नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए - एक दिन डॉ. फ्लेमिंग अपने उद्यान में पौधे का निरीक्षण कर रहे थे। उन्होंने एक पौधे पर फफूंदी आयी हुई देखी और कुछ फफूंदी को नष्ट होते हुए देखा। इस दृष्य से उन्हें यह जिज्ञासा हुई कि इस फफूंदी के नष्ट होने का क्या कारण है? इसके कारण को जानने के लिए वे प्रयोगशाला में जाकर अनुसंधान-कार्य में लग गये। अनुसंधान की इस प्रक्रिया में उन्होंने अनेक प्राक्कल्पनाओं का निर्माण किया, नियंत्रित परिस्थितियों में प्रयोगात्मक विधि से उनका सत्यापन किया तथा उनके असत्य सिद्ध होने पर नयी प्राक्कल्पनाओं का निर्माण किया.....। यह
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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