SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनविद्या 24 प्रक्रिया तबतक चलती रही जबतक कि उन्हें कुछ विशेष जीवाणुओं का सद्भाव होने पर फफूंदी के नष्ट होने का प्रत्यक्ष नहीं हुआ। उन्होंने नियंत्रित परिस्थितियों में प्रयोगपूर्वक उन विशेष जीवाणुओं का सद्भाव होने पर फफूंदी के अनिवार्यतया नष्ट होने तथा फफूंदी के नष्ट नहीं होने पर उन जीवाणुओं का भी अभाव होने के अनेक अन्वयव्यतिरेकी दृष्टान्तों का प्रत्यक्ष किया। इन प्रत्यक्षों में विद्यमान सादृश्य और विलक्षणता पर विचार करतेहुए उन्होंने विशेष प्रकार के जीवाणुओं के सद्भाव और फफूंदी के विनाश के मध्य व्याप्ति सम्बन्ध का निश्चय किया तथा अपने इस ज्ञान के आधार पर 'पेनिसिलिन' नामक दवा का आविष्कार किया। इसप्रकार व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान दो वस्तुओं के अनेक अन्वयव्यतिरेकी दृष्टान्तों के प्रत्यक्ष के आधार पर किया गया सामान्यीकरण मात्र नहीं है बल्कि यह विचारात्मक, अन्वेषणात्मक और परीक्षाप्रवण तर्क प्रक्रिया से अर्जित ज्ञान है। तर्क प्रक्रिया द्वारा व्याप्ति सम्बन्ध के निश्चय हेतु सामग्री प्रत्यक्ष द्वारा ही प्राप्त नहीं होती बल्कि 'अनुमान' और 'शब्द प्रमाण' द्वारा भी प्राप्त होती है। व्यक्ति व्याप्ति सम्बन्ध के निश्चय हेतु जो अनुसंधान-कार्य करता है उसमें वह विभिन्न प्रमाणों से अर्जित जानकारियों का उपयोग करता है। जो व्यक्ति जिस क्षेत्र विशेष में अबतक हए ज्ञान के विकास से जितना अधिक परिचित होता है उस क्षेत्र में वह उतने ही उत्कृष्ट व्याप्ति सम्बन्धों के अनुसंधान की क्षमता से युक्त होता है। डॉ. फ्लेमिंग विशेष प्रकार के जीवाणुओं के सद्भाव और फफूंदी के विनाश के मध्य व्याप्ति सम्बन्ध का निश्चय इसलिये कर सके कि वे जीवाणुओं के स्वरूप और उनकी शक्तियों के सम्बन्ध में अबतक हुए ज्ञान के विकास से परिचित थे। शब्द प्रमाण से अर्जित इस ज्ञान के आधार पर उन्होंने विभिन्न तथ्यों का अनुमान किया तथा इसके आधार पर प्राक्कल्पनाओं का निर्माण करके उन प्राक्कल्पनाओं की दिशा में अनुसंधान-कार्य किये तथा इसके द्वारा व्याप्ति सम्बन्ध का निश्चय किया। इस प्रकार व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण से अर्जित सामग्री द्वारा नहीं होता बल्कि यह प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द आदि सभी प्रमाणों के अवलम्बनपूर्वक घटित होनेवाली अन्वेषणात्मक प्रक्रिया से प्राप्त ज्ञान है। व्यक्ति का किसी भी क्षेत्र में अनुमान द्वारा अर्जित ज्ञान उस क्षेत्र में कार्यरत सार्वभौमिक नियमों के ज्ञानपूर्वक ही सम्भव होता है। इन नियमों को व्यक्ति सदैव ही स्वयं के अन्वेषणात्मक प्रयत्नों द्वारा नहीं जानता बल्कि वह इनका ज्ञान अनुमान और शब्द प्रमाण द्वारा भी प्राप्त करता है। जैसे एक डॉक्टर विभिन्न जीवाणुओं के सद्भाव और
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy