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________________ जैनविद्या 24 अपनी विलक्षण प्रतिभा का जो परिचय अपने से पूर्ववर्ती गूढ़, दार्शनिक, आध्यात्मिक एवं सैद्धान्तिक ग्रंथों - शब्दाम्भोज भास्कर, शाकटायन न्यास, पंचास्तिकाय, तत्वार्थवृत्ति, समाधितन्त्र एवं क्रियाकलाप पर भाष्य, टिप्पण, टीका लिखकर दिया है तथैव जिन्होंने अपनी लेखनी द्वारा संस्कृत गद्य के माध्यम से कथा जैसे ललित विषय पर भी अधिकारपूर्वक लिखने का कौशल प्रदर्शित किया है। ऐसे पण्डित प्रभाचन्द्र निश्चय ही अद्भुत क्षमतावाले प्रकाण्ड विद्वान (पण्डित) थे । 28 ऊपर श्री प्रभाचन्द्र द्वारा लिखित जिन ग्रंथों, कृतियों या रचनाओं का उल्लेख किया गया है उनके अतिरिक्त उनके द्वारा लिखित कुछ अन्य रचनाओं के सन्दर्भ - उल्लेख भी देखने को मिलते हैं। जैसे - 1. आदि पुराण ( रचना 838 ) के प्रारम्भ में पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए सेनसंघीय श्री जिनसेनाचार्य ( 770-850) ने एक कवि आचार्य के रूप में प्रभाचन्द्र के प्रति निम्न प्रकार से बहुमान प्रकट किया है. - चन्द्रांशु शुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकविं स्तुवे । कृत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाह्लादितं जगत् ।। चन्द्रोदयकृतस्तस्य यश केन न शस्यते । यदा कल्पमनाग्लानि सतां शेखरतां गतम् ॥ 12 अर्थात् चन्द्रमा की किरणों के समान श्वेत यश के धारक प्रभाचन्द्र कवि का स्तवन करता हूँ जिन्होंने चन्द्रोदय की रचना करके संसार को आल्हादित् किया। चन्द्रोदय की रचना करनेवाले उन प्रभाचन्द्र के कल्पान्त काल तक स्थिर रहनेवाले तथा सज्जनों के मुकुट भूत यश की प्रशंसा कौन नहीं करता ? अर्थात् सभी करते हैं। 2. हरिवंश पुराण ( रचनाकाल 783) के निम्न श्लोक में प्रभाचन्द्र के उज्ज्वल यश की चर्चा करते हुए उन्हें कुमारसेन का शिष्य बतलाया है आकूपारं यशो लोके प्रभाचन्द्रोदयज्ज्वलम् । गुरोः कुमारसेनस्य विचख्यजितात्मकम् । 3. श्रवणबेलगोल के शिलालेख (लगभग शक सं. 522 अर्थात् 600 ई.) में उल्लिखित आचार्य प्रभाचन्द्र जो भद्रबाहु श्रुतकेवलि (लगभग 350 ई. पू.) के शिष्य राजा चन्द्रगुप्त रहे बतलाए जाते हैं। 14
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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