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________________ जैनविद्या 24 प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र, तत्वार्थवृत्तिपद और क्रियाकलाप टीका के लेखकरचनाकार प्रभाचन्द्र ही हैं । 27 इसके अतिरिक्त यह भी एक ध्यान देने योग्य तथ्य है कि श्री प्रभाचन्द्र ने जिस प्रकार प्रमेयकमलमार्त्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र एवं आराधना - सत्कथा प्रबन्ध में अपने नाम के पूर्व 'पण्डित' विशेषण का प्रयोग किया है उसी प्रकार पंचास्तिकाय प्रदीप और समाधितन्त्र टीका इन दोनों टीका ग्रंथों में भी उन्होंने अपने नाम के पूर्व 'पण्डित' विशेषण का प्रयोग किया है इससे इन दोनों ग्रंथों के लेखक एक ही ( प्रभाचन्द्र) होने में कोई सन्देह नहीं होना चाहिये। इसके अतिरिक्त पण्डित प्रभाचन्द्र द्वारा लिखित 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार टीका' भी असंदिग्ध रूप से उनकी ही रचना है, क्योंकि एक तो उसमें समाधितंत्र टीका से शैलीगत साम्य है, दूसरे आराधना - सत्कथा - प्रबन्ध में उल्लिखित कथाओं से श्रावकाचार टीका में प्रतिपादित कथाओं में भी स्पष्टतः साम्य लक्षित होता है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि श्री प्रभाचन्द्र द्वारा प्रणीत कुछ कृतियों / ग्रंथों में उनके नाम के आगे 'पण्डित' विशेषण का प्रयोग किया गया है, किन्तु पश्चाद्वर्ती अन्य रचनाओं / कृतियों में उनके नाम के पूर्व 'पण्डित' विशेषण का प्रयोग नहीं मिलता है जैसा कि उनके द्वारा रचित 'आत्मानुशासन तिलक' के अन्त में उल्लिखित है ' इति प्रभाचन्द्राचार्य विरचितं।' इसी प्रकार 'प्रवचनसार सरोजभास्कर' के अन्त में 'इति प्रभाचन्द्रदेव विरचिते' अंकित पाया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि सम्भवतः गृहस्थ जीवनयापन करते हुए उस गृहस्थ जीवनकाल में उन्होंने जितने ग्रंथों की रचना की उनमें उन्होंने अपने नाम के पूर्व 'पण्डित' विशेषण, जो विद्वान होने का सूचक था और जिसका प्रयोग करने के वे अधिकारी थे, का प्रयोग किया। किन्तु कालान्तर में उनके द्वारा दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् त्यागी जीवनकाल में उन्होंने इस विशेषण का प्रयोग करना उचित नहीं समझा हो, क्योंकि यह विशेषण उनके लिए तुच्छ हो गया होगा जिसकी कोई उपयोगिता उनके लिए नहीं थी । यद्यपि प्रभाचन्द्र नाम के एकाधिक विद्वानों, ग्रंथकारों, टिप्पणकर्त्ताओं, न्यास लेखकों ने जैन वाङ्मय परम्परा को ज्योतिर्मान किया है, तथापि अपने पाण्डित्य और वैदूष्य की जो अमिट छाप तर्क और न्याय - विषयप्रधान ग्रंथों - प्रमेयकमलमार्त्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्र जैसे दुरूह ग्रंथ के रूप में पण्डित प्रभाचन्द्र ने छोड़ी है और
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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