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________________ जैनविद्या 24 4. वृहद् प्रभाचन्द्र जिन्होंने उमास्वामि के मूल तत्वार्थ सूत्र के सूत्रों का संक्षिप्तीकरण करते हुए दस अध्यायों में शताधिक सूत्रों में तत्वार्थ सूत्र की रचना की थी। यद्यपि इस सूत्र ग्रंथ में पूज्यपाद और अकलंकदेव आदि के आधार पर यत्र-तत्र परिवर्तन-परिवर्धन भी किया गया बतलाया जाता है। इन प्रभाचन्द्र का समय उमास्वामी (40-90 ई.) के उपरान्त ही सम्भव है।' 5. अर्हत्प्रवचन के कर्ता प्रभाचन्द्र जिन्होंने उक्त बृहद् प्रभाचन्द्र के तत्वार्थ सूत्र के अध्ययन के उपरान्त उक्त अर्हत्प्रवचन ग्रंथ की रचना पाँच अध्यायों - 84 सूत्रों में की बतलाई जाती है। श्री अकलंकदेव (625-673 ई.) द्वारा अपने ग्रंथ तत्वार्थ राजवार्तिक 5.38 में 'उक्तं च अर्हत्प्रवचने' लिखकर ‘अर्हत्प्रवचन' ग्रंथ का उल्लेख किया गया है जो कदाचित् प्रभाचन्द्र द्वारा लिखित उक्त ग्रंथ ही हो। 6. देवनन्दि पूज्यपाद (465-524 ई.) द्वारा लिखित 'जैनेन्द्र महान्यास' में एक उल्लेख 'रात्रेः कृति प्रभाचन्द्रस्य' के अन्तर्गत प्रभाचन्द्र को सन्दर्भित किया गया है।” ____7. आचार्य विनयनन्दि, जो परलुरु के निवासी थे, के शिष्य प्रभाचन्द्र का उल्लेख मिलता है जिन्हें राजा कीर्तिवर्मा प्रथम (शक सं. 489 याने 567 ई.) ने दान दिया था। 8. प्रभावक चरित (1277 ई.) के रचयिता श्री प्रभाचन्द्र सूरि ।" 9. सेनगण के भट्टारक बालचन्द्र के शिष्य भट्टारक प्रभाचन्द्र जिनका समय 12वीं शती ई. अनुमानित है।20 10. भट्टारक रत्नकीर्ति के शिष्य भट्टारक प्रभाचन्द्र जो चमत्कारी कार्य करने के लिए प्रसिद्ध थे। ___11. दिल्ली के भट्टारक जिनचन्द्र के शिष्य प्रभाचन्द्र (1479-1529 ई.) जो वि.सं. 1571 (1514 ई.) में दिल्ली के भट्टारक बने और बाद में जिन्होंने अपनी गद्दी चित्तौड़ स्थानान्तरित की। 'षट्-तर्क-तार्किकचूड़ामणि', 'वादिमदकुद्दल' और 'अबुद्ध प्रतिबोधक' आदि विशेषणों से अलंकृत इन भट्टारक प्रभाचन्द्र को अनेक ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ करवाकर ग्रंथ-संरक्षण का कार्य करने का श्रेय है।2 12. भट्टारक ज्ञानभूषण के शिष्य भट्टारक प्रभाचन्द्र ।23
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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