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________________ जैनविद्या 24 101 3. (1) तद् द्वेधा । प्रत्यक्षेतर भेदात्। वही, सूत्र 2.1 एवं 2.2. (2) परोक्षमितरत्। वही, सूत्र 3.1. 4. प्रत्यक्षादिनिमित्तं स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतर्वानुमानागमभेदम्। वही, सूत्र 3.2. 5. साध्याऽभावाऽसम्भवनियमनिश्चयलक्षणात् साधनादेव हि शक्याऽभिप्रेताप्रसिद्धत्वलक्षणस्य साध्यस्यैव यद्विज्ञानं तदनुमानम्। प्रमेयकमलमार्तण्ड, (परीक्षामुख, सूत्र 3.14 की टीका), पृ. 354, सत्यभामाबाई पाण्डुरंग, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, 1941. 6. प्रमेयकमलमार्तण्ड, भाग द्वितीय (परीक्षामुख, सूत्र 3.15 की टीका), वृ. 327, 328, 363, 388, श्री लाला मुसद्दीलाल जैन चेरीटेबल ट्रस्ट, 2/4 अन्सारी रोड, दरियागंज, देहली-110006. 7. वही, पृ. 322. 8. स हेतुढेधोपलब्ध्यनुपलब्धिभेदात्। परीक्षामुख, सूत्र 3.53 (3.57) 9. वही, सूत्र 3.55 (3.59) 10. जो प्रतिसमय परिणमनशील होकर भी अर्थात् पूर्व आकार का परित्याग कर और उत्तर आकार को धारण करते हुए भी दोनों अवस्थाओं में अपने स्वत्व को कायम रखता है उसे परिणामी कहते हैं। ऐसा परिणामीपना न सर्वथा कूटस्थ नित्य पदार्थ में सम्भव है और न ही सर्वथा क्षणिक पदार्थ में। बल्कि उत्पाद-व्यय के होते हुए भी ध्रुव (स्थिर) रहनेवाले पदार्थों में सम्भव है। प्रमेयरत्नमाला, (हिन्दी), पृ. 188, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, प्रथम संस्करण, 1964. 11. जो पदार्थ अपनी उत्पत्ति में अन्य के व्यापार की अपेक्षा रखता है उसे 'कृतक' कहते हैं। वह कृतकपना न तो कूटस्थ नित्य पदार्थ में सम्भव है और न ही सर्वथा क्षणिक पदार्थ में। वही, पृ. 187-188. 12. परीक्षामुख, सूत्र 3.61 (3.65) (सर्वार्थसिद्धि में संकलित) भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नयी दिल्ली, छठा संस्करण, 1995. 13. वही, सूत्र 3.62 (3.66) 14. वही, सूत्र 3.63 (3.67) 15. वही, सूत्र 3.64 (3.68) 16. वही, सूत्र 3.65 (3.69)
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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