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________________ 12 - जैनविद्या - 22-23 1. धर्मामृत (अनगार), भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली; सन् 1966 प्रस्तावना, सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द शास्त्री, पृ. 38। 2. बघेरवाल सन्देश, अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन बघेरवाल संघ, कोटा, राजस्थान, वर्ष 28, अंक 5, मई 1963, पृ. 14। 3. इत्युपश्लोकितो विद्वद्विल्हणेन कवीशिना। श्री विन्ध्यभूपति महासन्धि विग्रहिकेण य॥ आशाधरत्वं मयि विद्धि सिद्धि निसर्ग सौंदर्यमजर्यमार्य। सरस्वती पुत्रतया यदेतदर्थे परं वाच्यमय प्रपञ्च ॥ सागार धर्म, पं. आशाधर, जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय, हीराबाग, गिरगांव, मुम्बई, वी.नि.सं. 2454, सन् 1928 ई. । भव्यकुमुद चन्द्रिका टीका, प्रशस्ति श्लोक 6 एवं 94, प्रज्ञा पुञ्जोसीति च पांमिहितो मदन कीर्तिमति पतिवा। अनगार धर्मामृतम्, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, हीराबाग, मुम्बई, 14वाँ पुष्प, सं. - पं. बंशीधर शास्त्री, वी.नि.सं. 2445, सन् 1919, प्रशस्ति श्लोक 41 . 5. नय विश्व चक्षुराषाधरो पिजयतां कलि कालिदासः। इत्युदससेनमुनिना कवि सुहृदा योभिनन्दितः प्रीत्या ॥ (क) सागार धर्मामृत, प्रशस्ति श्लोक 3 एवं 4 (ख) अनगार धर्मामृत, श्लोक 3 एवं 4 6. डॉ. मानमल जैन (सेठिया), मुख्य सम्पादक, बघेरवाल सन्देश, वर्ष 28, अंक 5, मई ___ 1993, प्रस्तावना, पृ.-(क)। 7. अनगार धर्मामृत, अध्याय 8, श्लोक 6। 8. श्री मानास्ति सपादलक्ष विषयः शाकंभरी भूषणस्तत्र श्री रतिधाम मण्डलकरं नामास्ति दुर्ग महंत। जिन यज्ञकल्प, जैन ग्रन्थ उद्धारक कार्यालय, वि.सं. 1968, सन् 1916 । 9. श्री रत्यामुदमादि तत्र विमल व्या वालान्वयाक्षणतो जिनेन्द्र समय श्रद्धालु आशाधरः। सागार धर्मामृत, भव्य कुमुदचन्द्रिका टीका, प्रशस्ति 1। 10. व्याघ्ररवाल वरवंश सरोज हंसः काव्यामृतौ घरसपान सुप्रमात्रः। सल्लक्षणस्य तनयो॥ 11. सरस्वत्या मिवात्मानं सरस्वत्याभजीजनत् । यः पुत्र छाइडं गुण्यं रञ्जितार्जन् भूपतिम्॥ . सागार धर्म, भव्य कुमुदचन्द्रिका टीका, प्रशस्ति। 12. बघेरवाल सन्देश, वर्ष 26, अंक 5, मई 1993, पृ. 16। 13. वही, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी पं. आशाधरजी, पृ. 561
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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