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________________ जैनविद्या - 22-23 14. म्लेच्छदेशेन सपादलक्षविषये व्याप्ते सुवृत क्षति । त्रासाद्विन्ध्यनरेन्द्रहोः परिमल स्फूर्ज त्रिवगौजसि। प्राप्त मालवमण्डले बहुपरिवारः पुरीभावसन् यो धारामपढज्जिन प्रमिति वाकशास्त्रे महावीरातः। सा.ध.,टी.पृ.-5 । 15. जैन साहित्य एवं इतिहास, हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर, मुम्बई, 1956। 16. श्रीमदर्जुन भूपाल राज्ये श्रावक संकुले। जिन धर्मोदयार्थ यो मलकच्छपुरे वसंत्॥ अनगार धर्मामृत, भव्य चन्द्रिका टीका, प्रशस्ति श्लोक 7। 17. यो द्रग्व्याकरणब्धि पारमनयच्छुश्रूय माणानकान। सत्तर्की परमास्त्रमाप्य न यतः प्रत्यर्थिन: केऽक्षिपन्। चारु:केऽस्खलित न येन जिन वाग्दीपं पथि ग्रहिताः पीत्वा काव्यसुधां यतश्च रसिकेष्वापुः प्रतिष्ठान के। 'सागार धर्म, प्रशस्ति 91, और भी देखें अनगार धर्मामृत टीका प्रशस्ति 91। 18. द्रष्टव्य प्रशस्ति श्लोक 9 का भाष्य। 19. जैन साहित्य एवं इतिहास, पं. नाथूराम। 20. के भट्टारकदेव विनय, चन्द्रादय जिनवाग अर्हत् प्रवचनम् मोक्षमार्गे स्वीकारिताः। प्रशस्ति 9 भाष्य। 21. नलकच्छपुरे श्री मनेमि चैत्यालयेऽसिधत् । विक्रमाब्दशतेष्वेष त्रयोदशसु कार्तिके। अनगार धर्मामृत टीका, प्रशस्ति, श्लोक 31 । 22. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, डॉ. नेमिचन्द शास्त्री, अखिल भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत्परिषद, सागर, 1964, भाग 4, पृ. 43 । 23. वही। 24. प्रज्ञापुंज आशाधर, पं. नाथूराम, बघेरवाल संदेश, अंक 28/15, पृ. 16। 25. वही, पृ. 15। 26. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग 4, पृ. 44। 27. वीराचार्य सुपूज्यपाद जिनसेनाचार्य संभाषितोयः पूर्व गुणभद्रसूरि वसुनन्दीन्द्रादिनंचूर्जित तेभ्यः स्वाहतसारमध्य रचितः स्याङ्जैन पूजाक्रमः। बघेरवाल संदेश, 25, 5 मई 1993, पृ. 9। 28. श्री पं. आशाधरजी और उनका सागार धर्मामृत, पं. जगन्मोहनलालजी शास्त्री, व्याख्यान वाचस्पति देवकीनन्दन श्री सिद्धान्तशास्त्री ग्रन्थ, श्री महावीर ज्ञानोपासना समिति कारंजा, पृ. 1891
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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