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जैनविद्या - 22-23 - भट्टारक देवचन्द्र, विनयचन्द्र आदि - इन्हें पं. आशाधर ने धर्मशास्त्र (सिद्धान्त) का अध्ययन कराया था। इसी अध्ययन के प्रभाव से वे मोक्षमार्ग की ओर उन्मुख हुए थे। ___ महाकवि मदनोपाध्याय आदि : इनको काव्यशास्त्र का अध्ययन करा रसिकजनों से प्रतिष्ठा प्राप्त करने का अधिकारी बनाया था। इसके अतिरिक्त मुनि उदयसेन एवं कवि अर्हददास को भी इनके शिष्य होने का उल्लेख विद्वानों ने किया है। पं. आशाधर का समय ___पं. आशाधर का जन्म समय विवादग्रस्त नहीं है। इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं अपनी रचनाओं की तिथियों का उल्लेख किया है । अत: उनकी कृतियों का विश्लेषण करना अनिवार्य है।
प्रशस्तियों का आधार - पं. आशाधर के तीन ग्रन्थों में उनके द्वारा लिखी गई प्रशस्ति उपलब्ध है। जिन यज्ञकल्प' प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थ वि.सं. 1285 में समाप्त हुआ था। इसमें जिन ग्रन्थों का उल्लेख हुआ है। वे निश्चित रूप से वि.सं. 1285 में रचे गए थे। अनगार धर्मामृत टीका वि.सं. 1300 में पूरी हुई थी। अतः सिद्ध है कि इनका जन्म वि.सं. 1300 के पहले अवश्य हुआ होगा। डॉ. नेमिचन्द शास्त्री का अनुमान है कि वि.सं. 1300 को उनकी आयु 65-70 वर्ष रही होगी। इसलिए इनका जन्म वि.सं. 123035 के लगभग हुआ होगा । दूसरी बात है कि वि. सं. 1248-49 में वे माण्डलगढ़ से मालवा की धारा नगरी में आए थे। उस समय उनकी आयु 20 वर्ष की थी। इससे सिद्ध होता है कि उनका जन्म वि.सं. 1228-29 में हुआ होगा। इस सम्बन्ध में यह भी उल्लेखनीय है कि जब वे धारा नगरी आए उस समय विन्ध्यवर्मा का राज था। विन्ध्यवर्मा का समय वि.सं. 1217-1237 माना गया है। अत: सिद्ध है कि वि. की तेरहवीं शताब्दी में उनका जन्म हुआ होगा। ___पं नाथूराम प्रेमी ने लिखा है कि पं. आशाधर 35 वर्षों तक नालछा में रहे25 1 20 वर्ष की अवस्था में उन्होंने व्याकरण का अध्ययन किया होगा और इसके बाद वे नालछा में आकर साहित्य-सृजन करने लगे होंगे। पहली रचना उन्होंने 20 वर्ष की अवस्था में की होगी। अत: 35+30=65 वर्ष उनकी आयु सिद्ध होती है। जिनयज्ञ कल्प वि.सं. 1285 में से 65 घटाने पर उनका जन्म वि.सं. 1230 सिद्ध होता है।
2. अर्जुन वर्मा देव के वि.सं. 1267, 1260 और 1262 के दान-पात्र मिले हैं। इससे निष्कर्ष निकलता है कि अर्जुन वर्मा देव वि.सं. 1265 में अवश्य थे। धारा में पं. आशाधर ने 25-26 वर्ष की आयु में अध्ययन समाप्त किया होगा। अध्ययन समाप्त करके वे राजा अर्जुनदेव के राजकाल में नालछा चले गए थे। अत: इनका जन्मकाल वि.सं. 1230-1228 सिद्ध होता है।
3. वि. सं. 1376 में रचित जिनेन्द्र कल्याणभ्युदय में कवि अम्भपार्य ने अन्य जैन आचार्यों के साथ पं. आशाधर का उल्लेख किया है । अत: पं. आशाधर का जन्म विक्रम