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जैनविद्या - 22-23 (ब) जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 141 । 20. (अ) सागार धर्मामृत, 7.23-29।
(ब) जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 141 । 21. (अ) सागार धर्मामृत, 7.30-36।
(ब) जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 141 । 22. (अ) सागार धर्मामृत, 7.37-49।
(ब) जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 141 । 23. श्रावकपदानि देवैरकादश देशितानि खलुयेषु ।
स्वगुणाः पूर्वगुणैः सह संतिष्ठते क्रमविवृद्धाः।। 136 ॥ रत्नकरण्ड श्रावकाचार
- मंगल कलश 394, सर्वोदय नगर, आगरा रोड .
अलीगढ़-202001