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जैनविद्या - 22-23
अप्रेल - 2001-2002
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पं. आशाधरजी द्वारा प्रतिपादित
सद्गृहस्थ का लक्षण और श्रावक के आठ मूलगुण
- डॉ. सूरजमुखी जैन
पं. आशाधरजी का व्यक्तित्व बहुमुखी था। ये जैनाचार, अध्यात्म, दर्शन, काव्य, साहित्य, कोष, राजनीति, कामशास्त्र, आयुर्वेद आदि अनेक विषयों के प्रकाण्ड पंडित थे। ये मेधावी कवि, व्याख्याता और मौलिक चिन्तक थे। दिगम्बर परम्परा में इनका जैसा बहुश्रुत गृहस्थ विद्वान और ग्रन्थकार अन्य कोई नहीं दिखाई देता। इन्होंने विपुल परिमाण में साहित्य-सृजन किया है। सागारधर्मामृत में गृहस्थ धर्म का और अनागार धर्मामृत में मुनिधर्म का विस्तृत विवेचन किया है। यहाँ सागारधर्मामृत में इनके द्वारा प्रतिपादित सद्गृहस्थ का लक्षण और श्रावक के आठ मूलगुण विचारणीय हैं। इन्होंने सद्गृहस्थ का लक्षण बताते हुए कहा है -
न्यायोपात्तधनो यजन् गुणगुरून सद्गीस्त्रिवर्गभजनन्योन्यानुगुणं तदर्हगृहिणीस्थानालयो ह्रीमयः युक्ताहारविहार आर्यसमितिः प्राज्ञः कृतज्ञोवंशी
शृण्वन् धर्मविधिं दयालुरघभीः सागारधर्मं चरेत्॥ 1.11॥ 1. न्यायोपात्तधन की व्याख्या करते हुए लिखा है कि जो व्यक्ति न्याय और सदाचारपूर्वक अपनी आजीविका के लिए धन का उपार्जन करता है, स्वामिद्रोह, मित्रद्रोह,