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________________ जैनविद्या - 22-23 103 1. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग 4, पृष्ठ 46, क्षु. जिनेन्द्रवर्णी 2. सागार धर्मामृत, पं. आशाधर, हिन्दी अनुवादक-पण्डित लालाराम जैन, इन्दौर, अधिकार सं. 1, श्लोक सं. 201 3. शास्त्रसार समुच्चय, श्रावकाचार, सूत्र 10, आचार्य माघनन्दि योगीन्द। 4. (अ) बारस अणुवेक्खा , गाथांक 136। (ब) श्रावकाचार, गाथांक 301, आचार्य वसुनन्दि। (स) सागार धर्मामृत, श्लोक 17, पण्डित आशाधर, पृष्ठ 43-44 । 5. सागार धर्मामृत, आशाधर, 1.17; 3.9। 6. 'सप्त व्यसनानि', शास्त्रसार समुच्चय, आचार्य माघनन्दि योगीन्द्र तथा जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 143 अनुवादक मुनि प्रमाण सागर। 7. अष्टौमूलगुणाः, शास्त्रसार समुच्चय, आचार्य माघनन्दि योगीन्द्र, जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 141 । 8. जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, मुनि प्रमाण सागर, पृष्ठ 141 । 9. सागार धर्मामृत, 1.17, पण्डित आशाधर । 10. 'समय' सामायिक का पूर्व किन्तु अपूर्व रूप है। आत्मा के गुणों का चिन्तवन कर समता का अभ्यास करना वस्तुतः सामायिक है। लेखक द्वारा निरूपण । 11. सागार धर्मामृत, 1.17। 12. (अ) जैन तत्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 140। (ब) 'प्रोषध' शब्द का अर्थ है एकाशन अर्थात् एकबार भोजन। दोनों पक्षों की अष्टमी और चतुर्दशी के दिनों में एकाशनपूर्वक उपवास करना प्रोषधोपवास व्रत कहलाता है। 'जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 156। 13. (अ) सागार धर्मामृत, 1.7; 7.51 (ब) जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 140। 14. (अ) सागार धर्मामृत, 1.17; 7.8, 9, 10, 11। 15. जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 140। 16. सागार धर्मामृत, 1.17; 7.12, 13, 14, 15। 17. जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 140। 18. (अ) सागार धर्मामृत, 2.17, 7.16 । (ब) जैन तत्त्व विद्या, चरणानुयोग, पृष्ठ 140, 141 । 19. (अ) सागार धर्मामृत, 7.21, 221
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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