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________________ जैनविद्या - 22-23 के शब्दों में - "आशाधर अपने समय के बहुश्रुत विद्वान थे। न्याय, व्याकरण, काव्य, साहित्य, कोश, वैद्यक, धर्मशास्त्र, अध्यात्म, पुराण आदि विषयों पर उन्होंने रचना की है। सभी विषयों पर उनकी अस्खलित गति थी और तत्त्वसम्बन्धी तत्कालीन साहित्य से वे सुपरिचित थे। ऐसा प्रतीत होता है कि उनका समस्त जीवन विद्या-व्यसन में ही बीता था और वे बड़े ही विद्यारसिक और ज्ञानघन थे।" आचार्य जिनसेन ने अपनी जयधवला टीका की प्रशस्ति में अपने गुरु वीरसेन के सम्बन्ध में लिखा है कि उन्होंने चिरन्तन पुस्तकों का गुरुत्व करते हुए पूर्व के सब पुस्तक-शिष्यों को छोड़ दिया था अर्थात् चिरन्तन शास्त्रों के वे पारगामी थे। पं. आशाधर भी पुस्तक-शिष्य कहलाने के सुयोग्य पात्र थे। उन्होंने अपने समय में उपलब्ध जैन पुस्तकों को आत्मसात कर लिया था। 'जैन साहित्य और इतिहास' में पं. नाथूराम प्रेमी ने भी उपर्युक्त प्रकार से विचार प्रकट किए हैं। प्रभावी व्यक्तित्व ___पं. आशाधर बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं असाधारण कवि थे। उनका व्यक्तित्व सरल और सहज होने के कारण उनके मित्रों के अलावा मुनि और भट्टारक भी उनके प्रशंसक थे। उन्होंने उनका शिष्यत्व स्वीकार कर गौरव का अनुभव किया था। उनकी अपूर्व एवं विलक्षण प्रतिभा ने विद्वानों को चकित-स्तम्भित कर दिया था। राजा विन्ध्यवर्मा के सन्धिवैग्रहिक मंत्री एवं महाकवि विल्हण ने आशाधर की विद्वत्ता पर मोहित होकर कहा था - "हे आशाधर ! हे आर्य! तुम्हारे साथ मेरा स्वाभाविक सहोदरपना है और श्रेष्ठपना है क्योंकि तुम जिस तरह सरस्वतिपुत्र हो उसी तरह मैं भी हूँ।" उपर्युक्त कथन से सिद्ध होता है कि आशाधर कोई सामान्य पुरुष नहीं थे। इनके अपरिमित ज्ञान को देखकर श्री मदनकीर्ति मुनि ने उन्हें प्रज्ञा पुंज (ज्ञान के भण्डार) कहा है। इसी प्रकार उनके गुरुत्व से प्रभावित एवं आकर्षित होकर अनेक मुनियों एवं विद्वानों ने उन्हें अनेक उपाधियों से विभूषित किया है। मुनि उदयसेन ने पं. आशाधर को 'नय विश्वचक्षु' और 'कलि कालिदास' कहकर अभिनन्दन किया । भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति ने आशाधर को 'सूरि', 'सम्यग्धारियों में शिरोमणि' आदि कहा है। उत्तरवर्ती विद्वानों ने पं. आशाधर को 'आचार्य कल्प' कहा है। इसी प्रकार अनेक मुनिगणों ने उनका यशोगुणगान किया है। यद्यपि पं. आशाधर गृहस्थ विद्वान थे, लेकिन उन्हें निर्विकल्प अनुभूति हुई थी। पूर्व परम्परा के सम्यक अध्येता पं. आशाधर की विद्वत्ता पर जैनेतर विद्वान भी मुग्ध थे। उन्होंने 'अष्टांगहृदय' जैसे महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रन्थ पर टीका लिखी। काव्यालंकार और अमरकोश की टीकाएँ भी उनकी विद्वत्ता की परिचायक हैं। पं. आशाधर का जीवनवृत्त ___पं. आशाधर उन विद्वानों में से नहीं हैं जो अपने सम्बन्ध में चुप रहते हैं अर्थात् कुछ भी नहीं लिखते हैं। यह परम सौभाग्य की बात है कि पं. आशाधर ने 'जिन यज्ञकल्प',
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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