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जैनविद्या - 22-23
अप्रेल - 2001-2002
कलि-कालिदास : पं. आशाधर
- डॉ. जैनमति जैन
भारतीय साहित्य के क्षेत्र में 'कालिदास' महान प्रसिद्ध कवि हो गए हैं। पं. आशाधर को भी उनके प्रशंसकों ने उन्हें 'कलि-कालिदास' कहा है। कलि-कालिदास कहने का औचित्य क्या है? कवि कुलगुरु कालिदास ने साहित्य-साधना और प्रतिभा के बल पर अनेक महाकाव्यों, नाटकों और खण्ड काव्यों की प्रौढ़ संस्कृत भाषा में सृजना कर भारतीय वाङ्मय के विकास में महान योगदान दिया है। क्या ईसा की 13वीं शताब्दी के आचार्य पं. आशाधर ने कवि कालिदास के समान साहित्य-सृजना की? कलि-कालिदास कहने का तात्पर्य यही है कि पं. आशाधर ई. पूर्व प्रथम शताब्दी में होने वाले कालिदास के समान अपूर्व प्रतिभावान और काव्य की सभी विद्याओं पर लेखनी चलाने के धनी थे तथा उनका आदर्श जीवन अनुकरणीय था। ऊहापोहपूर्वक सिद्ध किया जाएगा कि पं. आशाधर कलि-कालिदास थे या नहीं? क्योंकि आजकल भक्त निर्गुण को भी 'कलिकालसर्वज्ञ', 'आचार्यकल्प' आदि उपाधियों से विभूषित करने लगे हैं।
सागार धर्मागृत के लेखक पं. आशाधर महान अध्ययनशील थे। उनके विशद एवं गम्भीर अध्ययन का ही प्रसाद है कि वे विभिन्न विषयों - जैन-आचार, अध्यात्म, दर्शन, साहित्य, काव्य, कोष, आयुर्वेद आदि सभी विषयों के प्रकाण्ड पंडित के रूप में विश्रुत हो सके। कोई गृहस्थ उनके समान ख्यातिप्राप्त प्रतिष्ठित विद्वान नहीं हुआ है । पं. कैलाशचन्द शास्त्री