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गया। 'धर्मामृत' के दो भाग हैं - प्रथम भाग का नाम 'अनगार धर्मामृत' है और द्वितीय भाग का नाम 'सागार धर्मामृत' है । यह संस्कृत भाषा की पद्य रचना है । ग्रंथकार ने इसकी स्वयं ही भव्यकुमुद चन्द्रिका टीका और ज्ञानदीपिका नामक पंजिका लिखी।' 'अनगार धर्मामृत में साधु के एवं सागार धर्मामृत में गृहस्थों के स्वरूप और उनकी अन्तर-बाह्य चर्या पर विस्तृत प्रकाश डाला है।' _ 'कहना न होगा कि पं. आशाधर का वैदुष्य विस्मयकारी है। विषय-प्रतिपादन एवं तत्सम्बन्धी भाषा-भणिति पर भी उनका समान और असाधारण अधिकार परिलक्षित होता है।' ___ 'वे संस्कृत के आकर-ग्रन्थों के साथ ही टीका-ग्रन्थों के निर्माताओं की परम्परा में पांक्तेय ही नहीं, अग्रणी भी हैं । भाषा उनकी वशंवदा रही, तभी तो उन्होंने इसे अपनी इच्छा के अनुसार विभिन्न भंगियों में नचाया है। वे संस्कृत भाषा के अपरिमित शब्द भण्डार के अधिपति रहे, साथ ही शब्दों के कुशल प्रयोक्ता भी। उनकी प्रयोगभंगी को न समझ पानेवालों के लिए उनकी भाषा क्लिष्ट हो सकती है किन्तु भाषाभिज्ञों के लिए तो वह मोद तरंगिणी है।'
'समग्रतः पण्डितप्रवर आशाधर अनेक विषयों के विद्वान होने के साथ-साथ असाधारण कवि थे। उनका व्यक्तित्व इतना सरल और सहज था जिससे तत्कालीन मुनि और भट्टारक भी उनका शिष्यत्व स्वीकारने में गौरव का अनुभव करते थे। उनकी लोकप्रियता की सूचना उनकी उपाधियाँ ही दे रही हैं । वस्तुतः प्रज्ञापुरुषोत्तम पण्डितप्रवर आशाधर का जैनदर्शन सम्बन्धी ज्ञान अगाध था। उनकी कृतियों की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह प्रत्येक बात को इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि पाठक पढ़ते-पढ़ते अध्यात्म रस में गोते लगाने लगता है । अध्यात्म का वर्णन प्राय: नीरस होता है पर पण्डितंजी की यह महनीय विशेषता रही है कि वह काव्य-शक्ति के द्वारा नीरस विषय को भी सरस बनाकर प्रस्तुत करते हैं । निश्चय और व्यवहार का निरूपण वे जिस सशक्त शैली में करते हैं उससे उनका गम्भीर पाण्डित्य तो झलकता ही है, साथ ही विषय पर पूर्ण अधिकार भी उजागर होता है । प्रज्ञापुरुषोत्तम पण्डितप्रवर आशाधर अध्यात्मजगत के एक दिव्य नक्षत्र थे जिनकी दीप्रप्रभा से आज भी आलोक विकीर्ण है।'
जैनविद्या पत्रिका का यह 22-23वाँ अंक आशाधर विशेषांक' के रूप में प्रकाशित है। हम उन विद्वान लेखकों के आभारी हैं जिनकी रचनाओं ने इस अंक का कलेवर बनाया।
संस्थान समिति सम्पादक मण्डल, सहयोगी सम्पादक एवं सहयोगी कार्यकत्ताओं के प्रति आभारी है। मुद्रण हेतु जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि. धन्यवादाह है।
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
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