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________________ जैनविद्या - 20-21 अप्रेल - 1999-2000 83 'तत्त्वार्थवार्तिक' में प्रतिपादित मानवीय मूल्य - डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन 'भारती' श्रीयुत् विनोबा भावे का कथन है, "पुराने शब्दों पर नये अर्थों की कलम लगाना ही विचारक्रान्ति की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है।" जैन न्यायविद्या के अप्रतिम आचार्य भट्ट अकलंकदेव ने आचार्य श्री उमास्वामी द्वारा विरचित 'तत्त्वार्थसूत्र' ग्रन्थ पर 'तत्त्वार्थवार्तिक' लिखकर मूल ग्रन्थ के भाव एवं अर्थ को जनग्राह्य बनाने की दिशा में अपना उल्लेखनीय योगदान किया है। इसे विनोबा भावे के कथनानुसार विचारक्रान्ति की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली कहा और माना जाना चाहिए। 'मानवीय मूल्य' तत्त्वार्थवार्तिक में खोजे जायें इसके पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि मानवीय अर्थात् 'मानव सम्बन्धी" मूल्य अर्थात् रचना के भीतर वर्तमान रहनेवाला ऐसा उद्देश्य जो उसे किसी सामाजिक आदर्श, व्यक्तिगत उच्चता आदि से जोड़े; 'मानवीय मूल्य' कहलाता है। “मानवीय संवेदना हर हालत में नैतिक-बोध (अर्थात् मानव-मूल्य) से जुड़ी रहती है, भले ही साधारण व्यक्ति को इसका ज्ञान न हो; परन्तु साहित्यकार की संवेदना अपेक्षाकृत अधिक सूक्ष्म होती है; क्योंकि उसमें सचेतन नैतिक बोध रहता है।''3 साहित्यकारों के लिए मनुष्य और उसके हाव-भाव-गुण सदैव अध्ययन के विषय रहे हैं। वैसे भी "साहित्य मनुष्य का ही कृतित्व है और मानवीय चेतना के बहुविध प्रत्युत्तरों (Responses) में से एक महत्त्वपूर्ण प्रत्युत्तर है।''4 अत: मानवीय मूल्यों से साहित्य का बच पाना असंभव ही होता है।
SR No.524767
Book TitleJain Vidya 20 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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