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________________ जैनविद्या - 20-21 75 __ शब्दों के अनेक अर्थ - शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं, इसके उदाहरण तत्त्वार्थवार्तिक में अनेक मिल जायेंगे। जैसे - प्रथम अध्याय के आठवें सूत्र की व्याख्या में अन्तर शब्द के अनेक अर्थ दिये गये हैं । अन्तर शब्द छेद, मध्य, विरह आदि अनेक अर्थों में है। उनमें से अन्यतम ग्रहण करना चाहिए। अन्तर शब्द के अनेक अर्थ हैं, यथा - 'सान्तरं काष्ठं' में 'अन्तर' छिद्र अर्थ में है अर्थात् छिद्रसहित काष्ठ है। 'द्रव्याणि द्रव्यान्तरमारभंते' यहाँ अन्तर शब्द अन्य अर्थ में है अर्थात् द्रव्यान्तर का अर्थ अन्य द्रव्य है। 'हिमवत्सागरान्तरे' इसमें अन्तर शब्द का अर्थ मध्य है अर्थात् हिमवान् पर्वत और सागर के मध्य में भरत क्षेत्र है। क्वचित् समीप अर्थ में अन्तर शब्द आता है। जैसे - स्फटिक शुक्लरक्ताद्यन्तरस्थस्य तद्वर्णता, श्वेत और लाल रंग के समीप रखा हुआ स्फटिक। यहाँ अन्तर का अर्थ समीप है। कहीं पर विशेषता अर्थ में भी अन्तर शब्द का प्रयोग बताया है। जैसे - घोड़ा, हाथी और लोहे में, लकड़ी, पत्थर और कपड़े में, स्त्री-पुरुष और जल में, अन्तर ही नहीं महान् अन्तर है। यहाँ अन्तर शब्द वैशिष्ट्यवाचक है। कहीं पर बहिर्योग में अन्तर शब्द प्रयुक्त होता है। जैसे - 'ग्रामस्यान्तरे कूपाः' में बाह्यार्थक अन्तर शब्द है अर्थात् गाँव के बाहर कुयें हैं । कहीं उपसंख्यान अर्थात् अन्तर्वस्त्र के अर्थ में अन्तर शब्द का प्रयोग होता है, यथा 'अन्तरे शाटकाः।' कहीं विरह अर्थ में अन्तर शब्द का प्रयोग होता है, जैसे – 'अनभिप्रेत श्रोतृ जनान्तरे मन्त्रयते' अर्थात् अनिष्ट व्यक्तियों के विरह में मन्त्रणा करता है। इस प्रकरण में छिद्र, मध्य और विरह में से कोई एक अर्थ लेना। अनुपहत वीर्य का अभाव होने, पर पुनः उसकी उद्भूति होना अन्तर है। किसी समर्थ द्रव्य की किसी निमित्त से अमुक पर्याय का अभाव होने पर निमित्तान्तर से, जब तक वह पर्याय पुनः प्रकट नहीं होती, तब तक के काल को अन्तर कहते हैं । अन्त शब्द के अनेक अर्थ होने पर भी 'वनस्पत्यन्तानामेकम्' में विवक्षावश समाप्ति अर्थ ग्रहण करना चाहिए। यह अन्त शब्द अनेकार्थवाची है। कहीं अन्त शब्द अवयव अर्थ में आता है। जैसे - वस्त्र का अन्त अर्थात् वस्त्र का एक अंश। कहीं सामीप्य अर्थ में आता है। उदकान्तं गत:' पानी के समीप गया। कहीं अवसान में आता है। जैसे 'संसारान्तं गतः' संसार का अन्त हो गया। अक्ष शब्द भोजन, सेवन तथा खेलने के अर्थ में आता है। प्रत्यय शब्द के अनेक अर्थ होने पर भी 'लब्धिप्रत्ययं च' सूत्र में हेतु अर्थ में लेना चाहिए। क्वचित् ज्ञान अर्थ में प्रत्यय शब्द आता है। जैसे - अर्थामिधान प्रत्यया - अर्थ का ज्ञान। कहीं सत्यता में आता है। जैसे - 'प्रत्ययं कर्तुं' इसमें सत्य करो, यह अर्थ होता है। क्वचित् कारण अर्थ में प्रत्यय शब्द आता है - 'मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये प्रत्यय हैं अर्थात् कर्मादान में कारण हैं। इस सूत्र में प्रत्यय शब्द कारण का पर्यायवाची जानना चाहिए।
SR No.524767
Book TitleJain Vidya 20 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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