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________________ 70 जैनविद्या - 20-21 ___ बौद्ध दर्शन-समीक्षा - अन्य दर्शनों की समीक्षा करते समय अकलंकदेव ने प्रायः बौद्ध, न्याय-वैशेषिक और सांख्य को दृष्टि में रखा है, किन्तु इनमें भी बौद्ध मन्तव्यों की उन्होंने जगहजगह आलोचना की है। इसका कारण यह है कि उनके समय बौद्धधर्म जैनधर्म का प्रबल विरोधी धर्म था। बौद्धधर्म का मर्मस्पर्शी अध्ययन करने हेतु अकलंकदेव को छिपकर बौद्ध मठ में रहना पड़ा था। इस हेतु उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा, किन्तु वे दुःखों के बीच रहकर भी घबराए नहीं। बौद्ध शास्त्रों का अध्ययन कर उन्होंने जगह-जगह उनसे शास्त्रार्थ कर जैनदर्शन की विजय-दुन्दुभी बजायी। उनकी तर्कपूर्ण प्रतिभा को देखते हुए उन्हें 'अकलंक ब्रह्मा' कहा जाने लगा। तत्त्वार्थवार्तिक के कतिपय स्थल हम उदाहरणरूप में प्रस्तुत करते हैं जिससे उनकी बौद्धविद्या में गहरी पैठ की जानकारी प्राप्त होती है। प्रथम अध्याय के प्रथम सूत्र की व्याख्या में कहा गया है कि यद्यपि बौद्ध रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान इन पाँच स्कन्धों के निरोध से आत्मा के अभाव रूप मोक्ष के अन्यथा लक्षण की कल्पना करते हैं तथापि कर्मबन्धन के विनाशरूप मोक्ष के सामान्य लक्षण में किसी भी वादी का विवाद नहीं है। बौद्ध कहते हैं कि अविद्या प्रत्यय संस्कार के अभाव से मोक्ष होता है.40 जैनों का कहना है कि संस्कारों का क्षय ज्ञान से होता है या किसी अन्य कारण से? यदि ज्ञान से संस्कारों का क्षय होगा तो ज्ञान होते ही संस्कारों का क्षय भी हो जायेगा और शीघ्र मुक्ति हो जाने से प्रवचनोपदेश का अभाव होगा। यदि संस्कार-क्षय के लिए अन्य कारण अपेक्षित हैं तो चारित्र के सिवाय दूसरा कौन-सा कारण है? यदि संस्कारों का क्षय चारित्र से होता है तो ज्ञान से मोक्ष होता है, इस प्रतिज्ञा की हानि होगी। पाँचवें अध्याय के नौवें सूत्र की व्याख्या में कहा गया है कि बौद्ध लोक-धातुओं को अनन्त मानते हैं । अतः आकाश के प्रदेशों को जैनों द्वारा अनन्त माने जाने में कोई विरोध नहीं है। पाँचवें अध्याय के सत्रहवें सूत्र की व्याख्या में कहा गया है कि कोई बौद्ध मानते हैं कि . रुपण, अनुभवनिमित्त ग्रहण, संस्कृताभि संस्करण, आलम्बन और प्रज्ञप्तिस्वभाव लक्षण रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान ये पाँच स्कन्ध हैं। उन भिन्न लक्षणवाले स्कन्धों में यदि एक स्कन्ध के ही सर्व धर्मों की कल्पना करते हैं तो विज्ञान के नहीं होने पर भी अनुभव आदि नहीं होते हैं, अर्थात् विज्ञान के ही अनुभव आदि होते हैं । अत: एक विज्ञान को ही मानना चाहिए। उसी से ही रूपादि स्कन्धों का रुपण, अनुभवन, शब्द प्रयोग और संस्कारादि कार्य हो जायेंगे। इसी तरह शेष स्कन्धों की निवृत्ति हो जाने पर निरालम्बन विज्ञान की भी स्थिति नहीं रह सकती अर्थात् विज्ञान की भी निवृत्ति हो जाने से सर्वशून्यता ही हाथ रह जायगी, परन्तु बौद्धों को पाँच स्कन्धों का अभाव इष्ट नहीं है। सभी वादी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पदार्थ को स्वीकार करते हैं। इसके समर्थन में कहा गया है कि कोई (बौद्ध) कहते हैं कि प्रत्येक रूप परमाणु अतीन्द्रिय है। उनका समुदाय, जो कि अनेक परमाणुवाला है, वह इन्द्रियग्राह्य है। चित्त और चैतसिक विकल्प अतीन्द्रिय हैं ।14 अमूर्त धर्म, अधर्म भी उपकारक होते हैं। इसके उदाहरण में बौद्धों का यह सिद्धान्त उपस्थित किया गया है कि अमूर्त भी विज्ञानरूप की उत्पत्ति का कारण होता है । नामरूप विज्ञान निमित्तक है।45
SR No.524767
Book TitleJain Vidya 20 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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