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जैनविद्या - 20-21
___ 1. प्रो. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य द्वारा लिखित अकलंकग्रन्थत्रय की प्रस्तावना, पृ. 92 2. श्री मद्भट्टाकलंकस्य पातु पुण्या सरस्वती,
अनेकान्तमरुन्मार्गे चन्द्रलेखायितं यया
- आचार्य शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव, सर्ग, 1/17 3. पं. कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री द्वारा लिखित न्यायकुमुदचन्द्र की प्रस्तावना, पृ. 44 4. सदसन्नित्यानित्यादि सर्व शैकान्तप्रति क्षेपलक्षणोऽनेकान्त - अष्टशती, अष्टसहस्री, पृ. 286 5. तत्वार्थवार्तिकम् - हिन्दी भाषानुवादिका : आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी, पृ. 67-68 6. वही, पृ. 328 7. वही, भाग 1, पृ. 20-21 8. वही, पृ. 21 9. वही, पृ. 23 10. वही, 4/42, पृ. 703-705 11. वही, 4/42 705-707 12. वही, पृ. 707-708 13. वही, पृ. 708-709 14. वही, भाग 2, पृ. 221 15. अर्पितानर्पित सिद्धेक, तत्वार्थसूत्र 3/32 16. तत्त्वार्थवार्तिकम् - भाग 2, पृ. 222 17. वही, पृ. 710 18. वही, भाग-1, पृ. 96-97 19. वही, पृ. 97-98 20. वही, पृ. 98-99
सहायक आचार्य जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन विभाग
___ जैन विश्वभारती, लाडनूं (राज.)