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________________ जैनविद्या - 20-21 49 सफेद भी नहीं है प्रतिषिद्धत्व होने से । इसी प्रकार परचतुष्टय की अपेक्षा वस्तु में नास्तित्व होने पर भी स्वदृष्टि से उसका अस्तित्व सिद्ध ही है। कहा भी है कथञ्चित् असत् की भी उपलब्धि और अस्तित्व है तथा कथञ्चित् सत् की भी अनुपलब्धि और नास्तित्व है। यदि सर्वथा सत् की अस्ति और उपलब्धि है ऐसा मान लिया जावे तो घट की पटादि रूप से भी उपलब्धि होने के कारण सभी पदार्थ सर्वात्मक हो जायेंगे। सर्वथा असत् की अनुपलब्धि और नास्तित्व नहीं है क्योंकि असत् की भी सर्वथा अनुपलब्धि एवं नास्तित्व मान लेने पर पदार्थ वचन के अगोचर हो जायेंगे अर्थात् पदार्थ का अभाव हो जाने से वह शब्द का विषय ही नहीं हो सकेगा। ___ पर्याय और पर्यायी में अनेकान्त - पर्याय और पर्यायी के भेद और अभेद में घटादि के समान अनेकान्तपना है। जैसे घट, कपाल, सिकोरा, धूलि आदि में द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन दोनों नयों की अपेक्षा कथञ्चित् एकत्व है और कथञ्चित् भिन्नत्व है क्योंकि यदि इसमें पर्यायार्थिक नय की गौणता हो तथा द्रव्यार्थिक नय की प्रधानता हो और पर्याय की अविवक्षा तथा मिट्टीरूप अनुपयोगी अजीव द्रव्य की विवक्षा से वर्णन किया जाये तो घट, कपालादि में एकत्व है क्योंकि घट, कपालादि मिट्टीरूप द्रव्य को नहीं छोड़ते हैं। यदि द्रव्यार्थिक नय की गौणता हो, पर्यायार्थिक नय की मुख्यता हो, द्रव्य की अविवक्षा और बाह्याभ्यंतर कारणोंजनित पर्याय की विवक्षा से कथन किया जाये तो घट, कपालादि में अन्यत्वपना है क्योंकि घट पर्याय और कपालादि पर्यायें परस्पर पृथक्-पृथक् हैं इसलिए मिट्टीरूप द्रव्य की अपेक्षा द्रव्यार्थिक नय से घट, सिकोरादि में कथञ्चित् एकत्व और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा पृथकत्व है क्योंकि मिट्टी का ही परिणमन होने से इनमें एकत्व है। उभयकारणों के फलस्वरूप प्राप्त हुई घट, कपालादि पर्याय मिट्टीरूप ही है, मिट्टी अन्य नहीं है और घटादि पर्याय भी अन्य नहीं है, क्योंकि मिट्टी द्रव्य को छोड़कर घटादि पर्याय उपलब्ध नहीं हैं। पर्याय और पर्यायी में भेदरूप कथन किया जाये तो दोनों में भिन्नता है क्योंकि पर्यायी मिट्टी द्रव्य है और घटादि पर्याय है।' ___ आत्मा और ज्ञान में भिन्नाभिन्नत्व - आत्मा और ज्ञानादि में कथञ्चित् भिन्नता है और कथञ्चित् अभिन्नता है । द्रव्यार्थिक नय की मुख्यता एवं पर्यायार्थिक नय की गौणता और पर्याय की अविवक्षा तथा अनादि पारिणामिक चैतन्य स्वभावरूप जीव द्रव्य की विवक्षा से कथन किया जाये तो ज्ञानादि गुणों में और आत्मा में एकत्व है क्योंकि ज्ञानादि गुण अनादि पारिणामिक चैतन्यस्वरूप जीव द्रव्य को नहीं छोड़ते हैं। यदि उनके ही द्रव्यार्थिक नय की गौणता, पर्यायार्थिक नय की प्रधानता, द्रव्य की अविवक्षा तथा कारण विशेष से आपादित भेद-पर्यायार्थिक नय की विवक्षा से कथन किया जाये तो ज्ञानादि गुण आत्मा से कथञ्चित् भिन्न हैं क्योंकि ज्ञान पर्याय अन्य है और दर्शन पर्याय अन्य है इसलिए आत्मा से ज्ञानादि पर्यायें कथञ्चित् भिन्न हैं और कथञ्चित् अभिन्न हैं । आत्मा और ज्ञान पृथक्-पृथक् नहीं है। आत्म द्रव्य को छोड़कर अन्यत्र ज्ञानादि पर्यायों का अभाव है। पर्याय और पर्यायी की भेद-विवक्षा से कथन करने पर दोनों भिन्न हैं और द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा अभिन्न है। आत्मा पर्यायी है और ज्ञानादि पर्याय है। आत्मा आधार है, ज्ञान आधेय है इसलिए आत्मा और ज्ञान के भेदाभेद के प्रति अनेकान्त दृष्टि का प्रयोग करना चाहिए।
SR No.524767
Book TitleJain Vidya 20 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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